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विधियाँ।
२०७ वर्धमानाय' के स्थान में 'संसारदावा' की तीन थुइ पढ़े।] पीछे नमुत्थुणं कहे । बाद कम से कम पाँच गाथा का स्तवन पड़े। बाद "वरकनकशङ्ख" कह कर इच्छामि-पूर्वक 'भगवानह' आदि चार खमासमण देवे । फिर दाहिने हाथ को चरवले या. या आसन पर रख कर सिर झुका कर "अढाइज्जेसु" पढ़े । फिर खड़ा हो कर "इच्छा० देवसिअपायच्छित्तविसोहणत्थं काउस्सग्ग करूं ? इच्छं, अन्नत्थ' कह कर चार लोगस्स का काउस्सम्ग करे । पार के प्रगट लोगस्स पढ़ कर "इच्छामि०, इच्छा० सज्झाय संदिसाहुं ? इच्छं, इच्छामि०, इच्छा० सज्झाय करूं ? इच्छे” कहे। बाद एक नवकार-पूर्वक सज्झाय कहे । अन्त में एक नवकार पढ़ कर पीछे "इच्छामि० इच्छा० दुक्खक्खओ कम्मक्खओ निमित्त काउस्सग्ग करूं ? इच्छं, अन्नत्थ” पढ़ कर संपूर्ण चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करे । पार कर "नमोऽर्हत्" कह कर शान्ति पढ़े । पीछे प्रकट लोगस्स कहे । बाद सामायिक पारना हो तो " इरियावहियं, तम्स उत्तरी, अन्नत्थ" पढ कर एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करे । पार के प्रगट लोगस्स कहे । पीछे बैठ कर "चउक्कसाय, नमुत्थुणं, जावंति चेइआई, इच्छामि खमासमणो, जावंत केवि साहू, नमोऽर्हत् , उवसग्गहरं, जय वीयराय" कह कर "इच्छामि० इच्छा० मुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं" कह कर पूर्वोक्त सामायिक पारने के विधि से सामायिक पारे । जाना; समाधि का थोड़ा थोड़ा अभ्यास डालना और त्याग द्वारा संतोष धारण करना इत्यादि है।
कम्मक्खओ नि कर पीछे "इच्छामक सज्झाय कहे । *
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