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विधियाँ ।
विधियाँ । सामायिक लेने की विधि | श्रावक-श्राविका सामायिक लेने से पहिले शुद्ध वस्त्र पहन कर चौकी (बाजोठ ) आदि उच्च स्थान पर पुस्तक-जपमाला आदि रख कर, जमीन पूँज कर, आसन विछा कर चरवला - मुहपत्ति ले कर बैठे । बैठ के बाँये हाथ में मुहपत्ति मुख के आगे रख कर दाहिने हाथ को स्थापन किये पुस्तक आदि के संमुख कर के तीन 'नमुक्कार' पढ़ कर 'पंचिंदियसंवरणो" पढ़े
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१ - विधि के उद्देश्य; जो आप नियमित बनना चाहता है और दूसरों को भी नियम -बद्ध बनाना चाहता है, उस के लिये आवश्यक है कि वह आज्ञा-पालन के गुण को पूरे तौर से प्राप्त करें । क्यों कि जिस में पूज्यों की आज्ञा को पालन करने का गुण नहीं है वह न तो अन्य किसी तरह का गुण ही ग्राप्त कर सकता है और न नियमित बन कर औरों को अपने अधिकार में ही रख सकता है । इस लिये प्रत्येक विधि का मुख्य उद्देश्य संक्षेप में इतना ही है कि आज्ञा का पालन करना; तो भी उस के गौण उद्देश्य आगे टिप्पणी में यथास्थान लिख दिये गये हैं ।
२ - मुहपत्ति एक एक बालिश्त और चार चार अङ्गल की लम्बी-चौड़ी तथा चरवला बत्तीस अङ्गुल का जिस में चाबीस अङ्गुल की डाँड़ी और आठ अङ्गुल की दशा हो, लेना चाहिये
३ -- स्थापना - विधि में पुस्तक आदि के संमुख हाथ रख कर नमुक्कार तथा पंचिंदिय सूत्र पढ़े जाते ह । इस का मतलब इतना ही है कि इन सूत्रों से परमेष्ठी और गुरु के गुण याद कर के ' आह्वान-मुद्रा' के द्वारा उन का आह्वान किया जाता हैं । नमुक्कार के द्वारा पञ्च परमेष्ठी की और पांवंदिय के
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