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प्रतिक्रमण सूत्र ।
अन्वयार्थ – 'शान्तिनिशान्त' शान्ति के मन्दिर, 'शान्तं' राग-द्वेष-रहित, 'शान्ताऽशिवं' उपद्रवों को शान्त करने वाले और 'स्तोतुः शान्तिनिमित्त' स्तुति करने वाले की शान्ति के कारणभूत, 'शान्ति' श्री शान्तिनाथ को ' नमस्कृत्य' नमस्कार कर के 'शान्तये' शान्ति के लिये 'मन्त्रपदैः' मन्त्र - पदों से ' स्तौमि ' स्तुति करता हूँ || १ |
भावार्थ — श्री शान्तिनाथ भगवान् शान्ति के आधार हैं, राग-द्वेष-रहित हैं, उपद्रवों के मिटाने वाले हैं और भक्त जन को शान्ति देने वाले हैं; इसी कारण मैं उन्हें नमस्कार कर के शान्ति के लिये मन्त्र - पदों से, उन की स्तुति करता हूँ ॥ १ ॥
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ओमिति निश्चितवचसे, नमो नमो भगवते ऽर्हते पूजाम् । शान्तिजिनाय जयवते, यशस्विने स्वामिने दमिनाम् ॥२॥
अन्वयार्थ—‘ओमितिनिश्चितवचसे' ॐ इस प्रकार के निश्चित वचन वाले, 'भगवते' भगवान्, 'पूजाम्' पूजा 'अर्हते' पाने के योग्य, 'जयवते' राग-द्वेष को जीतने वाले, ' यशस्विने' कीर्ति वाले और 'दमिनाम्' इन्द्रिय-दमन करने वालों-साधुओं के
वृद्ध - परम्परा ऐसी हैं कि पहिले, लोग इस स्तोत्र को शान्ति के लिये साधु व यति के मुख से सुना करते थे । उदयपुर में एक वृद्ध यति बार बार इसके सुनाने से ऊब गये, तब उन्हों ने यह नियम कर दिया कि 'दुक्खक्खओ कम्मक्खओ' के कायोत्सर्ग के बाद — प्रतिक्रमण के अन्त में - इस शान्ति को पढ़ा जाय, ता कि सब सुन सकें । तभी से इस का प्रतिक्रमण में समावेश हुआ है।
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