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१४२ . प्रतिक्रमण सूत्र ।
अन्वयार्थ---'सर्वाऽमरसुसमूहस्वामिकसंपूजिताय' देवों के सब समूह और उन के स्वामियों के द्वारा पूजित, 'निजिताय' अजित, “भुवनजनपालनोद्यततमाय' जगत् के लोगों का पालन करने में अधिक तत्पर, 'सर्वदुरितौघनाशनकराय' सब पाप-समूह का नाश करने वाले, 'सर्वाशिवप्रशमनाय' सब अनिष्टों को शान्त करने वाले, 'दुष्टग्रहभूतपिशाचशाकिनीनां प्रमथनाय' दुष्ट ग्रह, दुष्ट भूत. दुष्ट पिशाच और दुष्ट शाकिनियों को दबाने वाले, 'तस्मै' उस [श्रीशान्तिनाथ] को ‘सततं नमः' निरन्तर नमस्कार हो ॥४॥५॥
भावार्थ-जो सब प्रकार के देवगण और उन के नायकों के द्वारा पूजे गये हैं; जो सब से आजित हैं; जो सब लोगों का पालन करने में विशेष सावधान हैं; जो सब तरह के पाप-समूह को नाश करने वाले हैं; जो अनिष्टों को शान्त करने वाले हैं
और जो दुष्ट ग्रह, दुष्ट भूत, दुष्ट पिशाच तथा दुष्ट शाकिनी के उपद्रवों को दबाने वाले हैं, उन श्रीशान्तिनाथ जिनेश्वर को निरन्तर नमस्कार हो ॥४॥५॥ यस्येतिनाममन्त्र,-प्रधानवाक्योपयोगकृततोषा । विजया कुरुते जनहित,-मिति च नुता नमत तं शान्तिम् ॥६॥
अन्वयार्थ----'नुता' स्तुति-प्राप्त 'विजया' विजया देवी 'यस्य' जिस के 'इतिनाममन्त्रप्रधानवाक्य' पूर्वोक्त नामरूप प्रधान मन्त्रवाक्य के 'उपयोगकृततोषा' उपयोग से सन्तुष्ट हो कर 'जनहितं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org