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चउक्कसाथ सूत्र ।
उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ १८ ॥ अन्वयार्थ - - ' जिनेश्वरे' जिनेश्वर को 'पूज्यमाने' पूजने पर ' उपसर्गाः' उपद्रव 'क्षय' विनाश को 'यान्ति' प्राप्त होते हैं, 'विघ्नवल्लय : ' विघ्नरूप लताएँ 'छिद्यन्ते' छिन्न-भिन्न हो जाती हैं और 'मनः' चित्त 'प्रसन्नताम् ' प्रसन्नता को 'एति' प्राप्त | होता है ॥ १८ ॥
भावार्थ -- जिनेश्वर का पूजन करने से सब उपद्रव नष्ट हो जाते हैं, विघ्न-बाधाएँ निर्मूल हो जाती हैं और चित प्रसन्न हो जाता है ॥ १८॥
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सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् ।
प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ १९॥ अर्थ — पूर्ववत् ।
४५ - चउक्कसाय सूत्र । * चउकसायपडिमल्लूल्लूरणु, दुज्जयमयणबाणमुसुमूरणू । सरसपिअंगुवण्णु गयगामिड, जयउ पासु भुवणचयसामिउ १ अन्वयार्थ --' चउक्कसाय' चार कषायरूप 'पडिमल्ल' वैरी के 'उल्लूरणु नाश-कर्त्ता, 'दुज्जय' कठिनाई से जीते जाने वाले, * चतुष्कषायप्रतिमल्लताडनो, दुर्जयमदनबाणभञ्जनः । सरसप्रियङ्गुवर्णो गजगामी, जयतु पार्श्वेी भुवनत्रयस्वामी ॥१॥
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