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प्रतिक्रमण सूत्र ।
+ सव्वस्स जीवरासि,-स्स भावओधम्मनिहिनियचित्तो। सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ॥३॥
अन्वयार्थ --'सव्वस्स' सम्पूर्ण 'जीवरासिस्स' जीव राशि से 'सव्वं' [अपने सब अपराध को 'खमावइत्ता' क्षमा करा कर 'धम्मनिहिआनियचित्तो' धर्म में निज चित्त को स्थापन किये हुए 'अहयं पि' मैं भी 'सव्वस्स' [उन के सब अपराध को 'भावओ' भाव-पूर्वक 'खमामि' क्षमा करता हूँ ॥३॥ ..
भावार्थ-धर्म में चित्त को स्थित कर के सम्र्पूण जीवों से मैं अपने अपराध की क्षमा चाहता हूँ, और स्वयं भी उन के अपराध को हृदय से क्षमा करता हूँ॥३॥
३७--नमोऽस्तु वर्धमानाय । * इच्छामो अणुसदिठ, नमो खमासमणाणं ।
अर्थ-हम ‘अणुसट्टि' गुरु-आज्ञा ‘इच्छामो' चाहते हैं। 'खमासमणाणं' क्षमाश्रमणों को 'नमो' नमस्कार हो।
नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ।
अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सब साधुओं को नमस्कार हो।
नमोऽस्तु वर्धमानाय, स्पर्धमानाय कर्मणा । तज्जयाऽवाप्तमोक्षाय, परोक्षाय कुतीथिनाम् ॥१॥ + सर्वस्य जीवराशेर्भावतो धर्मनिहितनिजचित्तः।
सर्व क्षमयित्वा, क्षाम्यामि सर्वस्याहमपि ॥३॥ * इच्छामः अनुशास्ति, नमः क्षमाश्रमणभ्यः ।
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