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प्रतिक्रमण सूत्र । __ * वंदणवयासक्खागारवेसु सन्नाकसायदंडेसु ।
गुत्तीसु असमिईसु अ, जो अइआरोअतं निदे॥३५॥
अन्वयार्थ-'वंदणवयसिक्खा' वन्दन, व्रत और शिक्षा 'गारवेसु' अभिमान से 'सन्ना' संज्ञा से 'कसाय' कषाय से या 'दंडेसु' दण्ड से 'गुत्तीसु' गुप्तियों में 'अ' और 'समिईसु' समितियों में 'जो' जो 'अइयारो' अतिचार लगा 'तं' उसकी 'निंदे' निन्दा करता हूँ ॥३५॥ __भावार्थ--वन्दन यानी गुरुवन्दन और चैत्यवन्दन, व्रत यानी अणुव्रतादि, शिक्षा यानी ग्रहण और आसेवन इस प्रकार की दो शिक्षाएँ, सँमिति-ईर्या, भाषा, एषणा इत्यादि पाँच समितियाँ, गुप्ति* वन्दनव्रतशिक्षागौरवेषु संज्ञाकषायदण्डेषु ।
गुप्तिषु च समितिषु च, योऽतिचारश्च तं निन्दामि ॥३५॥ १-वन्दन, व्रत और शिक्षा का अभिमान 'ऋद्धिगौरव' है। २-जघन्य अष्ट प्रवचन माता (पाँच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ) और उत्कृष्ट दशवैकालिक सूत्र के षड्जीवानिकाय नामक चौथे अध्ययन तक अर्थ सहित सीखना ‘ग्रहण शिक्षा' है। [आव० टी०, पृ० ८३४]
३-प्रातःकालीन नमुक्कार मन्त्र के जप से ले कर श्राद्धदिनकृत्य आदि प्रन्थ में वर्णित श्रावक के सब नियमों का सेवन करना 'आसेवन शिक्षा' है।
श्राद्धप्रतिक्रमण वृत्ति, पृ० ३७] . ४-विवेक युक्त प्रवृत्ति करना ‘समिति' है। इस के पाँच भेद हैं:-ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणसमिति, और पारिष्ठापनिका समिति । [आव० सू०, पृ. ६१५] गुप्ति और समिति का आपस में अन्तर-गुप्ति प्रवृत्ति रूप भी है और निवृत्ति
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