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वंदित्त सूत्र |
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की इच्छा करना और (५) भोग की वाञ्छा करना; इस प्रकार संलेखना व्रत के पाँच अतिचार हैं । ये अतिचार मरण - पर्यन्त अपने व्रत में न लगें, ऐसी भावना इस गाथा में की गई है ॥ ३३ ॥
* कारण काइअस्स, पडिक्कमे वाइअस्स वायाए ।
मणसा माणसिअस्स, सव्वस्स वयाइआरस्स ||३४|| अन्वयार्थ---‘काइअस्स' शरीर द्वारा लगे हुए 'वाइअस्स' वचन द्वारा लगे हुए और 'माणसिअस्स' मन द्वारा लगे हुए 'सव्वस्स' सब 'चयाइआरएस' व्रतातिचार का क्रमशः 'काएण' काय-योग से ‘वायाए' वचन - योग से और 'मणसा' मनोयोग से 'पडिक्कमे' प्रतिक्रमण करता हूँ ॥ ३४ ॥
भावार्थ - अशुभ शरीर - योग से लगे हुए व्रतातिचारों का प्रतिक्रमण शुभ शरीर-योगे से, अशुभ वचन - योग से लगे हुए व्रतातिचारों का प्रतिक्रमण शुभ वचन- योग से और अशुभ मनोयोग से लगे हुए व्रतातिचारों का प्रतिक्रमण शुभ मनोयोग से करने की भावना इस गाथा में की गई है || ३४॥
* कायेन कायिकस्य, प्रतिक्रामामि वाचिकस्य वाचा । मनसा मानसिकस्य, सर्वस्य व्रतातिचारस्य ॥ ३४ ॥
१ ––– बध, बन्ध आदि । २ - कायोत्सर्ग आदि रूप । ३ - सहसा - अभ्याख्यान आदि । ४-मिथ्या दुष्कृतदान आदि । ५ - शङ्का, काक्षा आदि । ६-अनि
त्यता आदि भावना रूप |
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