SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वंदित्त सूत्र | ११५ की इच्छा करना और (५) भोग की वाञ्छा करना; इस प्रकार संलेखना व्रत के पाँच अतिचार हैं । ये अतिचार मरण - पर्यन्त अपने व्रत में न लगें, ऐसी भावना इस गाथा में की गई है ॥ ३३ ॥ * कारण काइअस्स, पडिक्कमे वाइअस्स वायाए । मणसा माणसिअस्स, सव्वस्स वयाइआरस्स ||३४|| अन्वयार्थ---‘काइअस्स' शरीर द्वारा लगे हुए 'वाइअस्स' वचन द्वारा लगे हुए और 'माणसिअस्स' मन द्वारा लगे हुए 'सव्वस्स' सब 'चयाइआरएस' व्रतातिचार का क्रमशः 'काएण' काय-योग से ‘वायाए' वचन - योग से और 'मणसा' मनोयोग से 'पडिक्कमे' प्रतिक्रमण करता हूँ ॥ ३४ ॥ भावार्थ - अशुभ शरीर - योग से लगे हुए व्रतातिचारों का प्रतिक्रमण शुभ शरीर-योगे से, अशुभ वचन - योग से लगे हुए व्रतातिचारों का प्रतिक्रमण शुभ वचन- योग से और अशुभ मनोयोग से लगे हुए व्रतातिचारों का प्रतिक्रमण शुभ मनोयोग से करने की भावना इस गाथा में की गई है || ३४॥ * कायेन कायिकस्य, प्रतिक्रामामि वाचिकस्य वाचा । मनसा मानसिकस्य, सर्वस्य व्रतातिचारस्य ॥ ३४ ॥ १ ––– बध, बन्ध आदि । २ - कायोत्सर्ग आदि रूप । ३ - सहसा - अभ्याख्यान आदि । ४-मिथ्या दुष्कृतदान आदि । ५ - शङ्का, काक्षा आदि । ६-अनि त्यता आदि भावना रूप | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy