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________________ प्रतिक्रमण सूत्र | भावार्थ ---- देने योग्य अन्न-पान आदि अचित्त वस्तुओं के मौजूद होने पर तथा सुसाधु का योग भी प्राप्त होने पर प्रमाद-वश या अन्य किसी कारण से अन्न, वस्त्र, पात्रादिक से उनका सत्कार न किया जाय, इसकी इस गाथा में निन्दा की गई है ॥३२॥ ११४ [ संलेखना व्रत के अतिचारों की आलोचना ] * इहलोए परलोए, जीविअ मरणे अ आसंसपओगे । पंचविहो अध्यारो, मा मज्झं हुज्ज मरणते ||३३|| अन्वयार्थ -- ' इहलोए' इस लोक की 'परलोए' परलोक की 'जीविअ ' जीवित की 'मरणे' मरण की तथा 'अ' च शब्द से कामभोग की 'आसंस' इच्छा 'पओगे' करने से 'पंचविहो' पाँच प्रकार का 'अइयारो' अतिचार 'मज्झ मुझ को 'मरणंते' मरण के अन्तिम समय तक 'मा' मत 'हुज्ज' हो ॥ ३३ ॥ भावार्थ-- -(१) धर्म के प्रभाव से मनुष्य-लोक का सुख मिले ऐसी इच्छा करना (२) या स्वर्ग - लोक का सुख मिले ऐसी इच्छा करना, (३) संलेखना ( अनशन ) व्रत के बहुमान को देख कर जीने की इच्छा करना, (४) दुःख से घबड़ा कर मरण * इहलोके परलोके, जीविते मरणे चाशंसाप्रयोगे । पञ्चविधोऽतिचारो, मा मम भवतु मरणान्ते ॥ ३३ ॥ + इमीए समणो० इमे पंच०, तंजहा - इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, कामभोगासंसप्पओगे | [आव० सू० पृ० ३] · Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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