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प्रतिक्रमण सूत्र ।
जाती है । ' संपइ ' वर्तमान समय में ' जिणवर ' जिनेश्वर 'वीस' बीस हैं, 'वरनाण' प्रधान ज्ञान वाले केवलज्ञानी. — मुणि' मुनि · बिहुँ ' दो ' कोडिहिं' करोड़ हैं, [ और ] * समणह' सामान्य श्रमण-मुनि · कोडिसहसदुअ' दो हजार करोड़ हैं; [उनकी ] ' निच्चं ' सदा 'विहाणि ' प्रातःकाल. में ' थुणिज्जइ ' स्तुति की जाती है ॥२॥
भावार्थ-[ तीर्थकर, केवली और साधुओं की स्तुति ] सब कर्म भूमियों में पाँच भरत, पाँच ऐरखत, और पाँच महाविदेह में-विचरते हुए तीर्थकर अधिक से अधिक १७० पाये जाते हैं । वे सब प्रथम संहनन वाले ही होते हैं । सामान्य केवली उत्कृष्ट नव करोड़ और साधु, उत्कृष्ट नव हजार करोड-९० अरब-पाये जाते हैं । परन्तु वर्तमान समय में उन सब की संख्या जघन्य है; इसलिये तीर्थङ्कर सिर्फः २०, केवलज्ञानी मुनि दो करोड़ और अन्य साधु दो हजार करोड़-२० अरब-- हैं। इन सब की मैं हमेशा प्रातःकाल में स्तुति करता हूँ ॥२॥
१-जम्बूद्वीप के महाविदेह की चार, धातकी खण्ड के दो महाविदेह की आठ और पुष्कराध के दो महाविदेह की आठ-इन बीस विजयों में एक एक तीर्थङ्कर नियम से होते ही हैं। इस कारण उनकी जघन्य संख्या बीस की मानी हुई है जो इस समय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org