________________
६६
प्रतिक्रमण सूत्र ।
रक्षा के लिये जो आचरण जरूरी है वह ज्ञानाचार कहलाता है। उस के स्थूल दृष्टि से आठ भेद हैं:
(१) जिस जिस समय जो जो आगम पढ़ने की शास्त्र में: आंज्ञा है उस उस समय उसे पढ़ना कालाचार है ।
(२) ज्ञानिओं का तथा ज्ञान के साधन - पुस्तक आदि का विनय करना विनयाचार है ।
(३) ज्ञानियों का व ज्ञान के उपकरणों का यथार्थ आदर करना बहुमान है ।
(४) सूत्रों को पढ़ने के लिये शास्त्रानुसार जो तप किया जाता है
वह उपधान 1
(५) पढ़ाने वाले को नहीं छिपाना - किसी से पढ़करें मैं इस से नहीं पढ़ा इस प्रकार का मिथ्या भाषण नहीं करना - अनिह्नव है ।
(६) सूत्र के अक्षरों का वास्तविक उच्चारण करना
व्यञ्जनाचार है ।
७
१ - उत्तराध्ययन आदि कालिक श्रत पढ़ने का समय दिन तथा रात्रि , का पहला और चौथा प्रहर बतलाया गया है । आवश्यक आदि उत्कालिक सूत्र पढ़ने के लिये तीन संध्या रूप काल वेला छोड़ कर अन्य सब समय योग्य माना गया है ।
Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org