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प्रतिक्रमण सूत्र ।
चार है । सब प्रकार के अतिचार अकर्तव्य रूप होने के कारण आचरने व चाहने योग्य नहीं हैं, इसी कारण उन का सेवन श्रावक के लिये अनुचित है।
तीन गुप्तिओं का तथा बारह प्रकार के श्रावक धर्म का मैंने कपायवश जो देशभङ्ग या सर्वभङ्ग किया हो उस का भी पाप मेरे लिये निष्फल हो ।
२८--आचार की गाथायें।
[पाँच आचार के नाम ] * नाणम्मि दंसणम्मि अ, चरणमि तवम्मि तह य विरियम्मि। आयरणं आयारो, इअ एसो पंचहा भणिओ ॥१॥
अन्वयार्थ'नाणम्मि' ज्ञान के निमित्त 'दसणम्मि' दर्शन
१-यद्यपि ये गाथायें ‘अतिचार की गाथायें' कहलाती हैं, तथापि इन में कोई अतिचार का वर्णन नहीं है; सिर्फ आचार का वर्णन है. इसलिये 'आचार की गाथायें' यह नाम रक्खा गया है । ___ 'अतिचार की गाथायें' ऐसा नाम प्रचलित हो जाने का सबब यह जान पडता है कि पाक्षिक अतिचार में ये गाथायें आती हैं और इन में वर्णन किये हए आचारों को लेकर उनके अतिचार का मिच्छा मि दुक्कडं दिया जाता है। . * ज्ञाने दर्शने च चरणे, तपसि तथा च वीर्ये ।
'आचरणमाचार इत्येष पञ्चधा भणितः ॥१॥ २–यही पांच प्रकार का आचार दशवैकालिक नियुक्ति गा० १८१ ।। में वर्णित है।
दसणनाणचरित्ते तवआयारियवीरियारे । एसो भावायारो पंचविहो होइ नायव्वो ॥
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