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जगचिंतामणि चैत्यवंदन । अन्वयार्थ-'तिअलोए' तीन लोक में 'अट्ठकोडीओ' आठ करोड, 'छप्पन्न' छप्पन 'लक्खा' लाख ‘सत्ताणवई' सत्तानवे सहस्सा' हजार ‘बत्तिसय' बत्तीस सौ 'बासिआई' ब्यासी 'चेइए' चैत्य-जिन-प्रासाद हैं [ उनको ] 'वंदे' वन्दन करता हूँ ॥ ४ ॥
भावार्थ-[ तीनों लोक के चैत्यों को वन्दन] । स्वर्ग, मृत्यु और पातल इन तीनों लोक के संपूर्ण चैत्यों की संख्या आठ करोड, छप्पन लाख सत्तानवे हजार, बत्तीस सौ, और ब्यासी (८५७००२८२) है; उन सब को मैं वन्दन करता हूँ ॥४॥ पिनरस कोडिसयाई, कोडी बायाल लक्ख अडवना ।
छत्तीस सहस असिई, सासयबिंबाइं पणमामि ॥५॥
अन्वयार्थ—पनरस कोडिसयाई' पन्द्रह सौ करोड़ 'बायाल' बयालीस 'कोडी' करोड़ 'अडवन्ना' अट्ठावन 'लक्खा' लाख 'छत्तीस सहस' छत्तीस हजार 'असिई' अस्सी 'सासयबिंबाई' शाश्वत-- कभी नाश नहीं पाने वाले--बिम्बों कोजिन प्रतिमाओं को 'पणमामि' प्रणाम करता हूँ ॥५॥
भावार्थ-—सभी शाश्वत बिम्बों को प्रणाम करता हूँ। शास्त्र में उनकी संख्या पन्द्रह सौ बयालीस करोड, अट्ठावन
पञ्चदश कोटिशतानि कोटीचित्वारिंशतं लक्षाणि अष्टपञ्चाशतं । षट्त्रिंशतं सहस्राणि अशीति शाश्वतबिम्बानि प्रणमामि ॥५॥
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