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उस ग्रन्थ में छह 'आवश्यक' का भी निरूपण है । प्रत्येक 'आवश्यक' का वर्णन करने वाली गाथाओं में अधिकांश गाथाएँ वही हैं, जो श्वेताम्बर - संप्रदाय में प्रसिद्ध श्रीभद्रबाहु - कृत नियुक्ति में हैं ।
मूलाचार का समय ठीक ज्ञात नहीं; पर वह है प्राचीन । उस के कर्ता श्रीवट्टकेर स्वामी हैं । 'वट्टकेर', यह नाम ही सूचित करता है कि मूलाचार के कर्ता संभवतः कर्णाटक में हुए होंगे । इस कल्पना की पुष्टि का कारण एक यह भी है कि दिगम्बरसंप्रदाय के प्राचीन बड़े-बड़े साधु, भट्टारक और विद्वान् अधिकतर कर्णाटक में ही हुए हैं । उस देश में दिगम्बर - संप्रदाय का प्रभुत्व वैसा ही रहा है, जैसा गुजरात में श्वेताम्बर- संप्रदाय का ।
मूलाचार में श्रीभद्रबाहु - कृत नियुक्ति-गत गाथाओं का पाया जाना बहुत अर्थ-सूचक है । इस से श्वेताम्बर-दिगम्बरसंप्रदाय की मौलिक एकता के समय का कुछ प्रतिभास होता है । अनेक कारणों से यह कल्पना नहीं की जा सकती है कि दोनों संप्रदाय का भेद रूढ़ हो जाने के बाद दिगम्बर - आचार्य ने श्वेताम्बर - संप्रदाय द्वारा सुरक्षित 'आवश्यक -निर्युक्ति- ' गत गाथाओं को ले कर अपनी कृति में ज्यों का त्यों किंवा कुछ परिवर्तन करके रख दिया है ।
दक्षिण देश में श्रीभद्रबाहु स्वामी का स्वर्गवास हुआ, यह तो प्रमाणित ही है, अत एव अधिक संभव यह है कि श्रीभद्रबाहु की जो एक शिष्य परंपरा दक्षिण में रही और आगे -जा कर जो दिगम्बर- Private & Personal Use Only" *www.jainelibrary.org