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प्रतिक्रमण सूत्र । होना चाहता हूँ अर्थात् आयंदा ऐसी विराधना न हो इस विषय में सावधानी रख कर उससे बचना चाहता हूँ।
जाते आते मैंने भूतकाल में किसी के इन्द्रिय आदि प्राणों को दबा कर, सचित्त बीज तथा हरी वनस्पति को कचर कर, ओस, चींटी के बिल, पाँचों वर्ण की काई, सचित्त जल, सचित्त मिट्टी और मकड़ी के जालों को रौंद कर किसी जीव की हिंसा की—जैसे एक इन्द्रिय वाले, दो इन्द्रिय वाले, तीन इन्द्रिय वाले, चार इन्द्रिय वाले, या पाँच इन्द्रिय वाले जीवों को मैंने चोट पहुँचाई, उन्हें धूल आदि से ढाँका, जमीन पर या आपस में रगड़ा, इकट्ठा करके उनका ढेर किया, उन्हें क्लेशजनक रीति से छुआ, क्लेश पहुँचाया, थकाया, हैरान किया, एक जगह से दूसरी जगह उन्हें बुरी तरह रक्खा, इस प्रकार किसी भी तरह से उनका जीवन नष्ट किया उसका पाप मेरे लिये निष्फल हो अर्थात् जानते अनजानते विराधना आदि से कषाय द्वारा मैंने जो पाप-कर्म बाँधा उसके लिये मैं हृदय से पछताता है, जिससे कि कोमल परिणाम द्वारा पाप-कर्म नीरस हो जावे और मुझको उसका फल भोगना न पड़े।
६-तस्स उत्तरी सूत्र । * तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्तकरणेणं,
विसोहीकरणेणं, विसल्लीकरणेणं, पावाणं * तस्योत्तरीकरणेन प्रायश्चित्तकरणेन विशोधिकरणेन विशल्यीकरणेन
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