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प्रतिक्रमण सूत्र ।
खाँसना, छींकना, जँभाई लेना, डकारना, अपान वायु का सरना, सिर आदि का घूमना, पित्त बिगड़ने से मूर्च्छा का होना, अङ्ग का सूक्ष्म हलन चलन, कफ-थूक आदि का सूक्ष्म झरना, दृष्टि का सूक्ष्म संचलन-ये तथा इनके सदृश अन्य क्रियाएँ जो स्वयमेव हुआ करती हैं और जिनके रोकने से अशान्ति का सम्भव है उनके होते रहने पर भी काउस्सग्ग अभङ्ग ही है । परन्तु इनके सिवाय अन्य क्रियाएँ जो आप ही आप नहीं होतीं - जिन का करना रोकना इच्छा के अधीन है - उन क्रियाओं से मेरा कायोत्सर्ग अखण्डित रहे अर्थात् अपवादभूत क्रियाओं के सिवाय अन्य कोई भी क्रिया मुझसे न हो और इससे मेरा काउस्सग्ग सर्वथा अभङ्ग रहे यही मेरी अभिलाषा है ।
( काउस्सग्ग का काल-परिमाण तथा उसकी प्रतिज्ञा ) । मैं अरिहंत भगवान् को ' नमो अरिहंताणं' शब्द द्वारा नमस्कार करके काउस्सग को पूर्ण न करूँ तब तक शरीर से निश्चल बन कर, वचन से मौन रह कर और मन से शुभ ध्यान धर कर पापकारी सब कामों से हटजाता हूँ - कायोत्सर्ग करता हूँ ।
८--लोगस्स सूत्र |
* लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसं पि केवली ॥ १ ॥
* लोकस्योद्योतकरान् धर्म्मतीर्थकरान् जिनान् । अर्हतः कीर्तयिष्यामि चतुर्विंशतिमपि केवलिनः ॥ १ ॥
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