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दिखा कर पहले कर्त्तव्य से अपना पिण्ड छुड़ा लेते हैं और अन्त में दूसरे कर्त्तव्य को भी छोड़ देते हैं । घूमने-फिरने आदि का बहाना निकालने वाले वास्तव में आलसी होता है । अत एव वे निरर्थक बात, गपोड़े आदि में लग कर 'आवश्यक - किया' के साथ धीरे धीरे घूमना-फिरना और विश्रान्ति करना भी भूल जाते हैं । इस के विपरीत जो अपमादी तथा कर्त्तव्यज्ञ होते हैं, वे समय का यथोचित उपयोग करके स्वास्थ्य के सब नियमों का पालन करने के उपरान्त 'आवश्यक' आदि धार्मिक क्रियायों को भी करना नहीं भूलते। ज़रूरत सिर्फ प्रमाद के त्याग करने की और कर्त्तव्य का ज्ञान करने की है ।
(२) दूसरे कुछ लोग कहते हैं कि 'आवश्यक किया' करने चालों में से अनेक लोग उस के सूत्रों का अर्थ नहीं जानते । वे तोते की तरह ज्यों के त्यों सूत्रमात्र पढ़ लेते हैं । अर्थ ज्ञान न होने से उन्हें उस क्रिया में रस नहीं आता । अत एव क्रिया को करते समय या तो सोते रहते या कुतूहल आदि से मन बहलाते हैं । इसलिये 'आवश्यक किया' में फँसना बन्धनमात्र है । ऐसा आक्षेप करने वालों के उक्त कथन से ही यह प्रमाणित होता है कि यदि अर्थ - ज्ञान - पूर्वक 'आवश्यक - किया की जाय तो वह सफल हो सकती है । शास्त्र भी यही बात कहता है । उस में उपयोगपूर्वक क्रिया करने को कहा है । उपयोग ठीक-ठीक तभी रह सकता है, जब कि अर्थ --
-ज्ञान
हो, ऐसा होने पर भी यदि कुछ लोग अर्थ विना समझे 'आव
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