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__ 'आवश्यक-क्रिया' की आध्यात्मिकता:-जो किया आत्मा के विकास को लक्ष्य में रख कर की जाती है, वही आध्यात्मिक क्रिया है । आत्मा के विकास का मतलब उस के सम्यक्त्व, चेतना, चारित्र आदि गुणों की क्रमशः शुद्धि करने से है । इस कसोटी पर कसने से यह अभान्त रीति से सिद्ध होता है कि सामायिक आदि छहों 'आवश्यक' आध्यात्मिक हैं । क्योंकि:___सामायिक का फल पाप-जनक व्यापार की निवृत्ति है, जो कि कर्म-निर्जरा द्वारा आत्मा के विकास का कारण है।
चतुर्विंशतिस्तव का उद्देश्य गुणानुराग की वृद्धिं द्वारा गुण प्राप्त करना है, जो कि कर्म-निजरा द्वारा आत्मा के विकास का साधन है।
वन्दन-क्रिया के द्वारा विनय की प्राप्ति होती है, मान खण्डित होता है, गुरु-जन की पूजा होती है, तीर्थकरों की आज्ञा का पालन होता है और श्रुतधर्म की आराधना होती है, जो कि अन्त में आत्मा के क्रमिक विकास द्वारा मोक्ष के कारण होते हैं । वन्दन करने वालों को नमूता के कारण शास्त्र सुनने का अवसर मिलता है । शास्त्र-श्रवण द्वारा क्रमशः ज्ञान, विज्ञान, प्रत्याख्यान, संयम, अनास्रव, तप, कर्मनाश, अक्रिया और सिद्धि, ये फल बतलाये गये हैं (आ०-नि०, गा० १२१५ तथा वृत्ति) । इस लिये वन्दन-क्रिया आत्मा के विकास का असंदिग्ध कारण है।
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