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- इन तत्वों के आधार पर आवश्यक-क्रिया का महल खड़ा है । इस लिये शास्त्र कहता है कि 'आवश्यक-क्रिया' आत्मा को प्राप्त भाव (शुद्धि ) से गिरने नहीं देती, उस को अपूर्व भाव भी प्राप्त कराती है तथा भायोपशमिक-भाव-पूर्वक की जाने वाली क्रिया से पतित आत्मा की भी फिर से भाव-वृद्धि होती है। इस कारण गुणों की वृद्धि के लिये तथा प्राप्त गुणों से स्खलित न होने के लिये 'आवश्यक-क्रियां' का आचरण अत्यन्त उपयोगी है। ___ व्यवहार में आरोग्य, कौटुम्बिक नीति, सामाजिक नीति इत्यादि विषय संमिलित हैं।
आरोग्य के लिये मुख्य मानसिक प्रसन्नता चाहिये । यद्यपि दुनियाँ में ऐसे अनेक साधन हैं, जिन के द्वारा कुछ-न-कुछ मानसिक प्रसन्नता प्राप्त की जाती है, पर विचार कर देखने से यह मालूम पड़ता है कि स्थायी मानसिक प्रसन्नता उन पूर्वोक्त तत्त्वों के सिवाय किसी तरह प्राप्त नहीं हो सकती, जिन के ऊपर 'आवश्यक-क्रिया' का आधार है ।। १- "गुणवद्बहुमानादे,-नित्यस्मृत्या च सत्किया। . ..
जातं न पातयेद्भाव, मजातं जनयदपि ॥५॥ क्षायोपशमिके भावे, या क्रिया क्रियते तया । पतितस्यापि तद्भाव, प्रवृद्धिीयते पुनः ॥६॥ गुणवृद्ध्य ततः कुर्या,-क्रियामस्खलनाय वा । एकं तु संयमस्थानं, जिनानामवतिष्ठते ॥७॥"
.. ज्ञानसार, क्रियाष्टक । ] .
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