________________
अतिरिक्त यशस्तिलक चम्पू में सोमदेव यशोधर महाराज की दो बार धर्मावलोक कहकर सम्बोधित करते हैं । यह उपाधि राष्ट्रकूटों की बोधगया को शाखा लुंगराजाओं की थी । इस से स्पष्ट है कि सोमदेव प्रारम्भ में गौड़देशीय गोड़संघ के शिष्य थे और सम्भवतः उन को नोधगया के राष्ट्रकूटों का राज्याश्रय प्राप्त था। वहां से वे लैमुलवाड में आये और वहाँ उन को राष्ट्रकटों के अधीनस्थ सामन्त मरिकेसरी तथा उस के उत्तराधिकारी का राज्याश्रय प्राप्त हुआ । राष्ट्र कूटों का चेधि तथा कन्नौज के गुर्जर प्रतिहारों से धनिष्ठ सम्बन्ध था। अत: यह कोई अनहोनी नहीं कि सोमदेव कन्नौज के महाराज महेन्द्रपाल द्विसीय के सम्पर्क में आये और उन के आग्रह पर उन्होंने नीतिवाक्यामृत की रचना की, जैसा कि नीतिवाक्यामृत के अज्ञात टोकाकार ने व्यक्त किया है।
हम हॉ० ० राघवन् तथा प्रो० जी० बी० देवस्थलो के उपर्युक्त विचारों से सहमत नहीं हैं। डॉ० राधयन् नीतिवाक्यामृत को प्रशस्तिलक के बाद की रचना नहीं मानते जो कि युक्तिसंगत नहीं । नीतिवाक्यामृत की प्रशस्ति में सोमदेव को यशोवरचरित आदि का रचयिता बताया गया है । अतः नोतिवाक्यामृत को यशस्तिलक के बाद की रचना स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए । श्री के. के. हण्डोको भी नोतिवाक्यामृत को यशस्तिलक के बाद की हो रचना मानते हैं और वे सोमदेव को कृष्ण ततीय तथा बगि का समकालीन स्वीकार करते हैं।
डॉ राघवन् नीतिबाक्यामृत के टीकाकार के इस कथन को सत्य मानते हैं कि "सामदेव ने कन्यकुब्ज के महाराज महेन्द्रदेव के आग्रह पर नीति वाक्यामृत को रचना की।" उन का कथन है कि व महेन्द्रपाल द्वितोय होंगे। हम डॉ० राघवन् के इस कथन से भी सहमत नहीं, क्योंकि महेन्द्रपाल, द्वितीय का समय ९४६ ई. माना गया है और यवास्तिलक की रचना ९५९ ई० मानी जाती है। नोतिवाक्यामुत उस के बाद की रचना है। अतः महेन्द्रपाल द्वितीय, जिन के राज्यकाल की तिथि ९४६ ई० है, के आग्रह पर नीतिवाक्यामृत की रचना की बात नितान्त असंगत प्रतीत होती है।
डॉ. श्यामशास्त्री का विचार है कि नीतिवाक्यामृत के रचयिता सोमदेव यचोघर महाराज के समकालीन थे। शास्त्रीजी का यह कथन आश्चर्यजनक प्रतीत होता है, क्योंकि यशोधर जैनियों के पौराणिक महापुरुष हैं । सोमदेव से कई शताब्दी पूर्व यशोधरचरित के विषय में पुष्पदन्त तथा बच्चराय आदि कवि रचना कर चुके थे । पुष्पदन्त का समय शकसंवत् ९०६ माना जाता है। अतः सोमदेव को यशोधर महाराज का समकालीन कभी नहीं माना जा सकता ।
8. The History 0:1 Culture o: t! Ini 11 Pole, Vol. IV, V, 18. 7. KK. I landinu--"'** istilik an Indian Culture, CW, 1, 1, 1, ३. Tlc History ail Oiliyenitli It lineral, Vol IV, I.31. ४. डो यामदासनी. - होम अशास्त्र की दुनिफा-.. ___ शांधर महामाजसमनसेन स नोकरिमा दीशिवायामृत नाम नीतिशार विचिन...। १.५० माधुराम प्रेनी, नीतित्रापारा ओ भूमिका, पृ०६, टिप्पणी।
सोमदेवसूरि और उन का नीसिवाक्यामृत