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सकता है ।
नारद ने भी सारभूत सेना को युद्ध में विजय प्रास करने का कारण बताया है। 'उफ छह प्रकार की सेना के अतिरिक्त सातवी प्रकार की सेना भी होती थी जिसे उत्साही सेना कहते थे । जब विजिगीषु शत्रु को जीतने के लिए उस पर चतुरंग सेना द्वारा प्रबल आक्रमण करता है वायर ट्रको १ करने तथा धन लूटने के लिए इस की सेना में मिल जाती है। इस में क्षाव तेज युक्त शस्त्र-विद्या प्रवीण व इस में अनुराग युक्त अत्रिय और पुरुष सनिक होते थे (२२, १३)। सेनाध्यक्ष
नीतिवाक्यामृत में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि राजा को किस व्यक्ति को सेनाध्यक्ष के पद पर नियुक्त करना चाहिए। प्राचीन युग में वही पक्ति इस पद पर नियुक्त किया जाता था जो विशिष्ट सैन्य गुणों से विभूषित होता था । यह पद बहुत ही महत्त्वपूर्ण था । अतः इस पद के लिए प्रत्येक व्यक्ति उपर्युक्त नहीं समझा जाता मा अपितु विशिष्ट गुण वाला पुरुष ही सेनाध्यक्ष बनाया जाता था, क्योंकि उसी पर राज्य की विजय और पराजय निर्भर होती थी। आचार्य सोमदेव ने लिखा है कि राजा उसी व्यक्ति को सेनाध्यक्ष के पद पर नियुक्त करे जिस में निम्नलिखित गुण हों।
कुलीन, आचार-व्यवहार सम्पन्न, राजविद्या प्रवीण ( विद्वान ) स्वामी सेवकों से अनुरक्त, पवित्र हृदर वाला, बहु परिवारयुक्त, समस्त नैतिक उपाय ( साम, दामादि ) के प्रयोग में निपुण, अग्नि व जल स्तम्भन प्रभृति में कुशल, जिस में समस्त हाथी, घोड़े मादि वाहन खङ्गादि शस्त्र-संचालन, युद्ध और मित्र देशवर्ती भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया हो, आत्मज्ञानी, समस्त सेना व आमत्य प्रति प्रधान रामसेवकों का प्रेमपात्र, जिस का शरीर योसाओं स तोश लेने की शक्ति सम्पन्न और मनोज्ञ ( युद्ध करने में उत्साही ) हो, स्वामी की आज्ञा पालने में रत रहने वाला, युद्ध में विजय प्राप्ति व राष्ट्र के लिए चिन्तन में विकल्प रहित, जिसे स्वामी ने अपने समान समझ कर सम्मानित व धन देकर प्रतिष्ठित किया हो, छत्रचामरादि राज्य चिह्नों से युक्त
और समस्त प्रकार के कष्ट व दु:खों को सहन करने में समर्थ (१२, १) । उक्त गुणों से विभूषित वोर पुरुष को सेनाध्याक्ष के पद पर आसीन करने से हो विजिगीषु को विजयलक्ष्मी प्राप्त होती है। यदि इन गुणों से शून्य व्यक्ति को इस महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्त कर दिया जायेगा तो राजा की अवश्य ही पराजय होगी।
__नोतिवाक्यामृत में सेनाध्यक्ष के दोषों पर भी प्रकाश डाला गया है। सोमदेव के अनुसार सेनाध्यक्ष के दोष इस प्रकार है-"जिस को प्रकृति आत्मीयजनों तया
१. कौ० अर्ध० १०.५। २. नार६० नीतित्र: पृ०२११
नीतिवाक्यामृत में राजनीति