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स्पर एक-दूसरे की रक्षा कर सकेंगे।' आगे आचार्य कौटिल्य लिखते हैं कि नदी, पर्वत, बम, गुष्टि ( ओषधिवृक्ष ), दरी ( कन्दरा), बलाशय, सेमावृक्ष, शमोवृक्ष तथा क्षीरवृक्ष { वटवृक्ष ) लगाकर उन्हीं के द्वारा ग्राम को सोमा का निर्धारण करें । उपर्युक्त रीति से बसे हुए आठ सौ ग्रामों के मध्य में स्थानीय नामक ( आगे चलकर निगम नाम से सम्बोधित किया जाने वाला स्थान ) नगर अथवा महाग्राम बसाये। चार सी ग्रामों के मध्य द्रोणमुख नामक उपनगर निवेश, वो सौ ग्रामों के बीच खाटिक नगर विशेष' एवं दस ग्रामों को मिलाकर संग्रहण नाम ना जनपद के मीमान्त एवं जनपद में प्रविष्ट होने और बाहर निकलने के द्वार स्वरूप धन्तपाल का दुर्ग स्थापित करे। उन अन्तपाल दुर्गों का एक अध्यक्ष रहेगा जिस का नाम होगा अन्तपाल ।
जनपद की रक्षा के सम्बन्ध में भी कौटिल्य ने उपयोगी विचार प्रस्तुत किये है। उन के अनुसार प्रत्येक ग्राम को अपनी रक्षा करने में समर्थ तथा साथ हो अन्य ग्रामों की रक्षा में सहायक होना चाहिए । जनपद की सीमाओं पर अन्तपाल दुर्ग स्थापित करने चाहिए। विविध दुगों के मध्य के सीमा प्रदेशों में बागुरिक ( बहलिये ), वायर, ( भौल ), पुलिन्द ( म्लेच्छ ), चण्डाल तथा अन्यान्य बनचर जाति के लोग उन अन्तपाल-दुर्ग समूहों की मध्यतिनी भूमि की रक्षा करें। तात्पर्य यह है कि राजा और उस का प्रतिनिधि अन्तपाल में दोनों उस प्रदेवा की निवासिनी उपर्युक्त जाति के लोगों द्वारा हो उस प्रदेश की रक्षा करेंगे। जनपद बसाते समय राजा ऋत्विक, प्राचार्य, पुरोहित और श्रोत्रिय ( वेदपाठी ) प्राह्मणों को सब प्रकार के करों से मुक्त कर के उन के पुत्र, पौत्रादि उसराधिकारी तक को उस सुविधा का अधिकारी बनाकर ब्रह्मदेव नामक भूदान करे । अन्तपाल दुर्ग के अध्यक्ष, संख्यायक ( गणनाकार्य तथा हिसाब-किताब रखने वाले ), दशग्रामी आदि के अधिकारी मोप, जनपद तथा नगर के चतुर्थाश के अधिकारी स्थानिक, हापियों को शिक्षा देने में निपुण पुरुष, अनोक्रस्थ, चिकित्सक, घोड़ों को प्रशिक्षण देने वाले और जंघालक (पैदल दौड़कर दूर देश में सन्देश पहुँचाने वाले ) इन सभी लोगों को दण्ड तथा कर से मुक्त कर के माफ़ी भूमि यो जाये । किन्तु यह भदान प्राप्त करने वाले व्यक्ति उस भमि को न बेच सकेंगे और म बन्धक रख सकेंगे। ये केवल उस का उपभोग करने के अधिकारी होंगे । जो लोग भमि का राज कर देते हों, उन्हें राजाकृत क्षेत्र माने । अर्थात् जिस क्षेत्र को फसल उत्पादन के योग्य बमाया जा चुका है, उसे केवल एक पीक्षा के लिए पट्टे पर दे । किन्तु जो क्षेत्र अकृत हैं, उसे किसान अपने पौरुष से उत्पादक बनायेगा । उस को राजा
१. कौ० अर्य, २.१। मृतपूर्वमभूतपूर्व वा जनपद परवेशापवाहन स्वदेवाभिष्मन्दवमनेन मा निवेशयेत् ।
शुदकर्षकप्राय कुशलतामर पञ्चशतकुलपर प्राम कोशनिको सीमानमन्यान्यारा निवेशामैत् । २. वहौ, २,१॥
राष्ट्र
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