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न्याय-व्यवस्था
या मुझे का दमन करना राजाका प्रमुख
कर्तव्य
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निष्पक्ष न्याय करना वह न्याय का स्रोत था । मनु का कथन है कि जो राजा अदण्डनीय को दण्ड देता है और दण्डनीय को दण्ड नहीं देता वह नरकगामी होता है । आचार्य शुक्र ने राजा के आठ कर्तव्यों में दुष्टनिग्रह को भी प्रधान कर्तव्य माना है । महाभारत के अनुसार न्याय व्यवस्था का मंदि उचित प्रवन्ध न हो तो राजा को स्वर्ग तथा यश की प्राप्ति नहीं हो सकती । याज्ञवल्क्य का कथन है कि न्याय के निष्पक्ष प्रशासन से राजा को बहो फल प्राप्त होता है जो यज्ञ आदि के करने से प्राप्त होता है । अतः निष्पक्ष न्याय राजा को यश एवं स्वर्ग को प्रदान करने वाला तथा प्रजा को सुख एवं शान्ति प्रदान करने वाला होता 1 आचार्य सोमदेव भी इसी प्राचीन परम्परा के अनुयायी थे । उन का कथन है कि जब राजा यम के समान कठोर होकर अपराधियों को दण्ड देता है तो प्रजा अपनी मर्यादा में स्थिर रहती है तथा राजा को धर्म, अर्थ और काम आदि पुरुषार्थी की प्राप्ति होती है (५, ६० ) । अन्यत्र आचार्य ने लिखा है कि जब राजा न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करता है तब सम्पूर्ण दिशाएं प्रजा को अभिलषित फल प्रदान करने वाली होती हैं ( १७, ४५) ।
प्रशासन में न्याय के महत्व का वर्णन करने के साथ हो आचार्य सोमदेव का यह भी कथन है कि जो राजा न्यायपूर्वक शासन नहीं करता वह प्रजापीड़न तथा असन्तोष का दोषी होता है और इस के परिणामस्वरूप वह नष्ट हो जाता है (८, २० ) । अतः न्याय व्यवस्था शासन के स्थायित्व का मूलाधार है ।
न्यायालय
राज्य में शान्ति और व्यवस्था की स्थापना के लिए न्याय व्यवस्था आवश्यक है । निष्पक्ष न्यायालय नागरिकों में राजभक्ति एवं विश्वास उत्पन्न करते हैं और उन
१. शुक्र० १. ९४ था नारद० प्रकीर्णक २३ |
२. कौ० अ० ९.९१ ०
२. मनु०८,१२८
४. ०] १. १२३ ॥
दुष्टनियन दानं प्रजायाः परिपालनम्।
राजने राजसूयाः कोशानो न्यायतोऽर्जनम् ॥
५. महान शान्ति०६६ ३२ ॥
१३५६०६०
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