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कार्य विधि - कोटिल्य अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र तथा अन्य नीतिशास्त्र के ग्रन्थों में कानून के चार प्रमुख बाधार बताये गये हैं--१, धर्म, २. व्यवहार, ३ चरित्र तथा ४. राजशासन इन्हीं आधारों के अनुसार न्याय किया जाता था । राजसंस्था के और अधिक विकसित हो जाने पर न्याय ( न्यायाधीशों के विचार ) और मीमांसा ( कानूनों की व्याख्या) को भी कानून का आधार माना जाने लगा । इसी लिए याज्ञवल्क्य ने श्रुति, स्मृति, शिष्टाचरण, व्यवहार न्याम, मीसांसा और राजकोय आशाओं को कानून का आधार माना है । याज्ञवल्क्य स्मृति भारतीय राज्य संस्थाओं के उस स्वरूप को प्रकट करती है जबकि कानून का रूप भली-भांति विकसित हो चुका था। शुक्र ने देश, जाति, जनपद, कुल य श्रेणी के कानूनों के अनुसार न्याय करने का आदेश दिया है । इस के विरुद्ध आचरण करने से प्रजा में क्षोभ उत्पन्न हो जाता है । मनु तथा अन्य धर्मशास्त्रों के रचयिताओं ने इस सिद्धान्त को आवश्यक बतलाया है कि विवादों का निर्णय जनपद, जाति, श्रेणी तथा कुल के परम्परागत घर्मो के अनुसार होना चाहिए। सोमदेव ने इस सम्बन्ध में कुछ नहीं लिखा है । सम्भवतः वे प्रायोन परम्परा को ही मानते थे, इसी कारण उन्होंने इस सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करना आवश्यक नहीं समझा। इसी प्रकार न्यायालयों की कार्य-विधि के सम्बन्ध में भी उस के ग्रन्थ में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं मिलता। इस का कारण यही है कि न्यायालयों की कार्य-प्रणाली इतनी सरल व सुनिश्चित थी कि प्रत्येक व्यक्ति इस से भलो - भाँति परिचित था । अतः उन साधारण बातों का वर्णन करना सोमदेव ने आवश्यक नहीं समझा ।
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न्यायालय में वादों ( मुकदमों ) पर विचार खुले रूप से किया जाता था । कोई भी व्यक्ति वहाँ की कार्यवाही को देख-सुन सकता था। भारत में गुप्त रूप से न्याय करने की प्रणाली को दोषयुक्त समझा जाता था । यद्यपि नीतिवाक्यामृत में न्यायालयों की कार्यविधि के सम्बन्ध में कोई विशेष वर्णन नहीं मिलता, किन्तु फिर भी उसमे जो न्याय व्यवस्था के सम्बन्ध में प्रकाश डाला गया है उस के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि भारत में उस समय भो वही प्रणाली प्रचलित थी जिस का उल्लेख धर्मशास्त्रों तथा नीतिशास्त्रों में हुआ है ।
याद के चरण - किसी भी बाद के चार चरण होते थे । १. प्रतिज्ञा, २. उत्तर, २. क्रिया और ४. निर्णय
९. ० अर्थ ०३१ ।
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२. याज्ञ० २,२
३. शुक्र० ४ १६२ ।
४. मनु० ८.४१ ।
जातियाम्यमदान्धर्मान्धर्माधर्मवि समय कुलधमं प्रतिपादयेत् ।
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नीतिवाक्यामृत में राजनीति