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(२९, २०) । विभिगोपु वही होता पा जिस की अधीनता में अनेक माण्डलिक अथवा सामन्त राजा होते थे।
युद्धकाल में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध
सभी भारतीय विचारक इस बात पर सहमत हैं कि अन्य उपाय विफल हो जाने पर ही किसी राजा से युद्ध प्रारम्भ करना चाहिए । अन्य उपाय है..-साम, दाम और भेद । इन उपायों के प्रयोग द्वारा यदि कोई उसम परिणाम नहीं मिलता है तो रामा को दण्ड का प्रयोग करना चाहिए । मनु ने कहा है कि प्रथम तीन उपायों द्वारा यदि शत्रु नहीं रोका जा सकता है तो फिर उसे दण्ड द्वारा ही परास्त करना चाहिए। लगभग सभी बिचारकों ने महत्त्वाकांक्षी राजाओं को यथासम्भव युद्ध से दूर रहने और शान्तिमय उपायों ( सामादि में ) से ही अभीष्ट सिद्ध करने के प्रयास का उपदेश दिया है। सोमदेव ने भी इस बात को पुष्टि की है। उन्होंने कहा है कि जब विजिगीषु बुद्धियुद्ध ( साम आदि उपायों ) के प्रयोग द्वारा शत्रु पर विजयश्री प्राप्त करने में असमर्थ हो जामें सभी उसे शस्त्र-युद्ध करना चाहिए (३०,४)। अन्यत्र उन्होंने कहा है कि बुद्धिमान् सचिव का यह कर्तव्य है कि वह अपने स्वामी को पहले सन्धि के लिए प्रेरित की। इस में कहा हो पर मह
यु एसेरित करे । उन का कप्पन है कि वह मन्त्री एवं मित्र दोनों निन्ध शत्रु के समान है जो शत्रु सारा आक्रमण किये जाने पर अपने स्वामी को भविष्य में कल्याणकारक अन्य सन्धि आदि उपाय न बताकर पहले ही युद्ध करने में प्रयत्नशील होने का या भूमि परित्याग कर दूसरे स्थान पर भाग जाने का परामर्श देकर उस को महा अनर्थ में डाल देते हैं ( ३०,१)। युद्ध के परिणामों को ध्यान में रखकर इस उपाय का प्रयोग अन्तिम रूप से ही करने का आदेश था।
परन्तु भारतीय विचारक यह भी जानते थे कि सदैव के लिए युद्ध को नहीं रोका जा सकता है। अत: उस की सम्भावना को यथासम्भव कम करने के लिए उन्होंने विविध राज्यों के मण्डल बनाकर उन में शक्ति सन्तुलन बनाये रखने की व्यवस्था की थी। विविध राज्यों को मरने चारों और स्थित राज्यों से इस प्रकार मित्रता तथा सन्धि कर के शशि-मन्तुन स्थापित करना चाहिए कि उन को शान्ति और सुरक्षा बनी रहे और किसी भी शक्तिसाली राज्य को उस पर आक्रमण करने का साहस न हो सके।
प्राचीन भारतीय राजनीतिक साहित्य में मण्डल सिवान पर अयन्त बल दिया गया है । लगभग सभी राजनीतिप्रधान ग्रन्थों में इस विषय को विस्तृत पाया की गयी है। मनु. कामन्दक, तथा कौटिल्य आदि विषारकों ने इस विषय को बहुत महत्वपूर्ण माना है और राजा के लिए यह निर्देश दिया है कि उस को अपनी नीति का
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध