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शत्र राजा व प्रतिकूल व्यक्ति को वश में करने के चार उपाय साम, दाम, भेद व दण्ड है । इन के प्रयोग से शत्रु व प्रतिकुल व्यक्ति को वश में किया जा सकता है । आचार्य सोमदेव ने इन चार उपायों को व्याख्या भी की है जो इस प्रकार हैसामनोति
___ यह प्रथम उपाय बताया गया है। यदि किसी राज्य में कोई भयानक शत्रुता न होकर किसी साधारण बात पर आपस में वैमनस्य उत्पन्न हो गया हो तो उसे समझाबुझाकर आपसी वैमनस्य दूर कर लेना चाहिए। यह नहीं कि उस पर सीधा आक्रमण हो कर दिया जाये । आचार्य सोमदेव ने साममीति के पांच भेद बतलाये है
१.गुण संकीतन-प्रतिकूल व्यक्ति को अपने अनुकूल करने के लिए उस के गुणों की उस के सामने प्रशंसा करना ।
२. सम्बन्धोपाख्यान-जिस उपाय से प्रतिकूल व्यक्ति को मित्रता दृढ़ होती है उसे उस के प्रति कहना । |
३. परोपकार दर्शन-विरुद्ध व्यक्ति को भलाई करना !
४. आयति प्रदर्शन हम लोगों की मैत्री का परिणाम भविष्य के जीवन को एखी बनाना है, इस प्रकार की बात को प्रतिकल व्यक्ति से प्रकट करना ।
५. आत्मोपसन्धान-रा घन आप अपने कार्य में प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रकार दूसरे को अपने अनुकूल बनाने के लिए व्यक्त करना (२९, ७०) । ग्यास का कथन है कि जिस प्रकार वचनों द्वारा सज्जनों के चित्त विकृत नहीं होते उनी प्रकार सामनीति से प्रयोजनार्थों का कार्य विकृत न होकर सिख ही होता है और जिस प्रकार शक्कर द्वारा शान्त होने वाले पित्त में पटोल ( औषधि-विशेष) का प्रयोग व्यर्थ है उसी प्रकार सामनीति मे सिद्ध होने वाले कार्य में दण्डनीति का प्रयोग भी ध्यर्थ है। दामनीति
जहाँ पर विजिगीषु शत्रु से अपनी प्रचुर सम्पत्ति के संरक्षणार्थ उसे थोड़ा-सा धन देकर प्रसन्न कर लेता है उसे दामनोति कहते है ( २९,७३ ) । शुक्र ने भो रान से प्रचुर धन के रक्षार्थ तसे थोड़ा धन देकर प्रसन्न करने को उपप्रदान [ दाम ) कहा है। इस नीति का प्रयोग ऐसी परिस्थिति में करना चाहिए, जब प्रथम नीति से काम न बने और यह निश्चय हो कि युद्ध से दोनों राज्यों की हो हानि होगी तथा दूसरा राज्य अपने से अधिक शक्तिशालो है जिस को आक्रमण कर के नहीं दबाया जा सकता। ऐसी स्थिति में शत्रु राज्य को थोड़ा धन आदि भेंट स्वरूप देकर उसे अपने पक्ष कर लेना ही हितकारक है ।
१, ज्यास-नीतिका पृ० ३२१ ।
नीतिवाक्यामृत में राजनीति