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शत्रु से भी युद्ध को तत्पर हो जाता है। ऐसी स्थिति में उस का विनाश अवश्यम्भावी हो जाता है (३०, ११) । अपने विनाश के निश्चित हो जाने पर भी राजा को युद्ध क्षेत्र से भागना नहीं चाहिए पनि युद्ध में कह पाए क्योंकि भागने वाले की मृत्यु निश्चित ही रहती है ( ३०, १२ ) । परन्तु युद्ध में यह बात निश्चय पूर्वक नहीं कही जा सकती कि युद्ध करने वाले की अवश्य ही मृत्यु हो जायेगी । यदि यह दीर्घ आयु है तो उस की सफलता अवश्य ही होती | विजय और पराजय तथा जीवन और मृत्यु विधि के अधीन है ( ३०, १५ ) । सोमदेव का मत है कि यदि शत्रु अपने से अधिक शक्तिशाली हो तो उस से युद्ध कभी नहीं करना चाहिए, अपितु सन्धि ही कर लेनी चाहिए । जिस प्रकार पदाति सेनिक हस्ति आरूढ़ सैनिक से युद्ध करने पर नष्ट हो जाता है उसी प्रकार हीन शक्ति वाला राजा भी अपने से अधिक शक्तिशाली राजा के साथ युद्ध करने से नष्ट हो जाता है ( ३०, ६९ ) । युद्ध के समय विपक्ष से आये हुए किसी भी अपरीक्षित व्यक्ति को अपने पक्ष में नहीं मिलाना चाहिए । यदि उसे अपने पक्ष में मिलाना आवश्यक हो तो भली-भाँति परीक्षा करने के उपरान्त हो उसे अपने पक्ष में मिलाना चाहिए। उसे यहाँ ठहरने नहीं देना चाहिए ( ३०, ५० ) । शत्रु के कुटुम्बो, जो कि उस से अप्रसन्न होकर वहाँ से चले आये हों उन्हें परीक्षोपरान्त अपने पक्ष में मिलाना चाहिए, क्योंकि शत्रु सेना को नष्ट करने का प्रमुख मन्त्र यही है ( ३०, ५० तथा ५१ ) ।
इसके साथ ही विजिगीषु जिस शत्रु पर आक्रमण करे उस के कुटुम्बियों को साम, दाम बादि उपायों द्वारा अपने पक्ष में मिलाकर उन्हें शत्रु से युद्ध करने के लिए प्रेरित करना चाहिए ( ३०, ५४-५६ ) । विजिगीषु का कर्तव्य है कि शत्रु ने उस की जितनी हानि की है उस की उस से अधिक हानि कर के उस के साथ सन्धि कर लेनी चाहिए। दोनों शत्रु कुपित होने पर हो सन्धि के सूत्र में बंध सकते हैं, उस से पूर्व नहीं ( ३०, ५७ ) । समान शक्ति वालों का परस्पर युद्ध होने से दोनों का मरण निश्चित होता है और विजय प्राप्ति सन्दिग्ध रहती है। जिस प्रकार कच्चे घड़े परस्पर एक दूसरे से साड़ित किये जायें तो दोनों नष्ट हो जाते हैं । उसी प्रकार समान शक्ति वाले शत्रुओं का युद्ध होने से दोनों ही मष्ट हो जाते हैं ( ३०, ६८ ) ।
संन्ध-संगठन
किसी भी राजा की विजय सुशिक्षित सेना पर ही निर्भर है। अतः राजा का यह कर्तव्य है कि वह एक सुशिक्षित तथा शक्तिशाली सेना का संगठन करे। आचार्य सोमदेव का कथन हैं कि शक्तिहीन तथा कर्तव्य विमुख अधिक सेना की अपेक्षा शक्तिशाली एवं कर्तव्यपरायण अल्प सेना उत्तम है ( ३०, १६ ) । जब शत्रु द्वारा उपद्रव किये जाने पर विजिगीषु की सारहीन सेना मष्ट हो जाती है, तो उस की शक्तिशाली सेना भी अधीर हो जाती है (३०, १७ ) । अतः विजिगीषु को दुर्बल सेना कभी
नीतिवाक्यामृत में राजनीति
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