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उक्त गुणों से युक्त देश में यदि राजा निवास करेगा तो उसे समस्त त्रिमूर्तियां प्राप्त होंगी और वह निष्कण्टक रहेगा । यदि उस पर कोई बाह्य या आन्तरिक संकट आता है तो वह उस का सामना करने में सर्वथा समर्थ होगा ।
कामन्दक ने भी इस विषय में कुछ प्रकाश डाला है। उन का कथन है कि राष्ट्र को समृद्धि उस की भूमि के गुणों पर आधारित है। राष्ट्र की समृद्धि में ही राजा की समृद्धि निहित है, अतः राजा को अपनी समृद्धि के लिए उत्तम गुणों से युक्त भूमि का चयन करना चाहिए। वह भूमि विविध फ़सलों एवं खनिज पदार्थों से विभूषित होनी चाहिए। जहाँ व्यापारिक वस्तुओं की बहुलता हो, खानें हों, द्रव्य हो, जो स्थान चरागाहों के लिए उपयुक्त हों, जहाँ पानी को अधिकता हो, जहाँ आदर्श चरित्र वाले व्यक्ति निवास करते हों, जो स्थान आकर्षक हों, जहाँ सुन्दर वन हों, हाथी हों, जल-थल के आवागमन के साधनों को सुविधा हो और जो वर्षा के जल पर निर्भर न हो । जो भूमि कंकरोली एवं पथरीली हो, जंगलों से युक्त तथा चोरों से भरपूर हो, जहाँ जल का अभाव हो, जो स्थान कांटेदार झाड़ियों तथा सप मुक्त ही वह स्थान राष्ट्र के लिए उपयुक्त नहीं है ।
जनपद के गुण
आचार्य सोमदेवसूरि ने जनपद के गुणों का विस्तृत विवेचन किया है जो बहुत हो महत्त्वपूर्ण है । वे लिखते हैं कि वही जनपद उसम है जो परस्पर रक्षा करने वाला हो अर्थात् जहाँ राजा देश की तथा देश राजा की रक्षा करता हो। जो स्वर्ण, रजत, ताम्र, लोह आदि धातुओं एवं गन्धक, नमक यादि खनिज द्रव्यों को खानों से तथा जो द्रव्य एवं हाथियों से मुक्त हो, जिस के ग्रामों की जनसंख्या न बहुत अधिक हो और न बहुत कम, जहां पर बहुत से उत्तम पदार्थ, विविध भौति के अन्न, स्वर्ण और व्यापारियों के क्रय-विक्रय योग्य वस्तुएँ प्राप्त होतो हों, जो मेघजल की अपेक्षा से रहित हो तथा जो मनुष्य एवं पशुओं को सुख देनेवाला हो (१९, ८ ) ।
जिस जनपद में व्यक्तियों की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से हो सके, जहाँ लोगों का जीवन और सम्पत्ति हर प्रकार से सुरक्षित हो वहीं जनता निवास करती है । किन्तु जिस जनपद में उपर्युक्त गुण नहीं होते वह राज्जा और प्रजा दोनों के किए कष्टदायक होता है। जिस देश में जनता के जोवकोपार्जन के सरल साधन उपलब्ध नहीं होते उस देश को त्यागकर जनता अन्यत्र चली जाती है। आचार्य सोमदेव का कथन है कि वह देश निन्द्य है जहाँ पर मनुष्य के लिए जीवन निर्वाह के साधन (कृषि तथा व्यापार आदि) नहीं हैं, अतः विवेकी पुरुष को जीविका योग्य देश में निवास करना चाहिए (२७, ८ ) ।
१- कामन्दक ४, ५०-६६ ।
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नीतिवाक्यामृत में राजनोसि