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बूत के गुण
आचाव में दू: : या है जो इस प्रकार हैस्वामी भक्त, तक्रीटा, मद्यपान आदि व्यसनों से अनासक्त, अतुर, पवित्र, निलोभी, विद्वान्, उदार, बुद्धिमान्, सहिष्णु, शत्रु का ज्ञाता तथा कुलीन होना चाहिए (१३,२) ।
जो राजा इन गुणों से युक्त दूतों को अन्य राज्यों में नियुक्त करते थे उन के समस्त कार्य सिद्ध होते थे। दूतों के भेद
आचार्य सोमदेवसरि ने तीन प्रकार के दूतों का उल्लेख किया है१ नि:सृथार्थ दूत, २ परिमितार्थ दूत, ३ शास नहर दूस्त (१३, ३)।।
१. निःसृष्टाथै दूत-वह दूव था जिस के द्वारा निश्चित किये हुए सन्धिविग्रह को उस का स्वामी प्रमाण मानता था जिस को अपने राज्य के कार्य-सिद्धि के हित में बातचीत करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त था (१३, ४)।
२. परिमितार्थ दूत-राजा द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर दूसरे राजा से वार्तालाप करने का इसे अधिकार होता था। इस दूत को राजा द्वारा भेजे हुए सन्देश को ही शत्रु राजा के सामने कहने का अधिकार था।
३. शासनाहर दूत-यह दूत अपने राजा के शासन ( लेख ) को दूसरे राजा के पास ले जाने का अधिकार रखता था। इस के अधिकार इस कार्य तक ही सीमित थे। दूत के कार्य
आचार्य सोमदेव ने दूत के कार्यों पर भी प्रकाश डाला है। उन के अनुसार दूत के निम्नलिखित कार्य है
१. नैतिक उपाय द्वारा यात्रु के सैनिक संगठन को नष्ट करना ।
२. राजनीतिक उपायों द्वारा शत्रु को दुर्बल बनाना तथा शत्रु विरोधी पुरुषों को साम-दामादि उपायों द्वारा वश में करना ।
३. शत्रु के पुत्र, कुटुम्बी व कारागार में बन्दो मनुष्यों मे द्रव्य-दान द्वारा भेद ।। उत्पन्न करना।
४. पात्रु द्वारा अपने देश में भेजे हुए गुप्त पुरुषों का ज्ञान प्राप्त करना। ५. सीमाधिपति, आटविक, कोश, देश, सैन्य और मित्रों की परीक्षा करना ।
६, शत्रु राजा के यहां विद्यमान कन्या रस्न तथा हाथी, घोड़े आदि वाहनों को अपने स्वामी को प्राप्त कराना।
७. शत्रु के मन्त्री तथा सेनाध्यक्ष आदि में गुमचरों के प्रयोग द्वारा क्षोम उत्पन्न करना ये दूत के कार्य हैं (१३, ८)।
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नीतिषाक्यामृत में राजनीति