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कर्षणक्रिया की अपेक्षा शून्य पथरीली भूमि भी ऊसर भूमि के समान उपज-शून्य अथवा बहुत कम उपजाऊ होती है । अतः ऐसे देश में सर्वधा दुर्भिक्ष निश्चित रूप से रहता है। देश की जनसंख्या के विषय में विचार
देश की जनसंख्या के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मतभेद वर्गों के सम्बन्ध में है । मनु का कथन है कि राजधानी में अधिकांश जनसंख्या आर्यों को होनी चाहिए। अन्य स्थान पर मनु लिखते हैं कि जिस राज्य में शूद्रों एवं नास्तिकों की संख्या अधिक होगी तथा ब्राह्मणों को कम । वह राष्ट्र मुभि एवं व्याभिचों से पीड़ित होकर भट हो जायेगा। इस के विपरीत विष्णुधर्मसूत्र में लिखा है कि राष्ट्र में अधिक जनसंख्या वैश्य एवं शुद्रों को होनी चाहिए। आचार्य कौटिल्य मे जनपद के संगठन के विषय में विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि राजा नये सामों को इस ढंग से बसाये कि उन में अधिकांश जनसंख्या शूद्रों की ही हो। जनपद का संगठन
___ जनपद के बसाने के विषय में भी आचार्य सोमदेव ने छपने प्रसिद्ध ग्रन्थ नोतिवाक्यामृत में कुछ उल्लेख किया है । आचार्य लिखते हैं, कि राजा का यह कर्तव्य है कि परदेश में चले जाने वाले अपने देशवासियों को, जिन से कर ग्रहण किया हो उन्हें दानसम्मान द्वारा वश में कर के और उन्हें अपने देश के प्रति अनुयायो बनाकर उन्हें वहाँ से बुलाकर अपने देश में बसाये (११, ३)। सारांश यह है कि अपने देशवासी शिष्ट व उद्योगशील व्यक्तियों को परदेश से लाकर अपने देश में बसाने से राष्ट्र की जनसंख्या में वृद्धि होती है तथा व्यापारिक उन्नति, राजकोश को वृद्धि होती है एवं गुप्त रहस्य संरक्षण आदि अनेक लाभ होते है । जिस के परिणामस्वरूप राष्ट्र की अभिवृद्धि होती है। प्राम संगठन
प्रत्येक राष्ट्र में ग्राम हो शासन की सबसे छोटी इकाई होता है। अतः ग्रामों के बसाने में भी बड़ी कुशलता से समस्त जातियों के अनुपात को दृष्टि में रखकर आवास त्र्यवस्था करनी चाहिए । जो राष्ट्र इस सन्तुलन को स्लो देते हैं तथा एक जाति की प्रधानता वाले ग्रामों को बसाते हैं, वहां सदा आपसी मतभेद बना रहता है और उपद्रव होते रहते हैं। यह बात अनुभवसिद्ध है कि जिस ग्राम में क्षत्रिय शूरवीर अधिक संख्या में निवास करते हैं वहां वे लोग थोड़े से कशे ( आपसी तिरस्कार आदि से होने वाले कष्टों ) के होने पर आपस में ही लड़ मरते है (१९. ११) ।
१. मनु०७६६ । २. वही.८.२३ । ३. वि० धर्मसूत्र । ४. कौ० अ० २.१।
नीतिषाक्यामृत में राजनीति