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राष्ट्र को सभी जातियों से धन का आदान करना होता है। धन को देने के विषय में सभी जातियों में कुछ स्वभावगत विभेद होता है। ब्राह्मण जाति के स्वभाव की विशेषता का परिचय देते हुए सोमदेव ने लिखा है कि ब्राह्मण लोग अधिक कृषण होने के कारण राजा के लिए देने योग्य कर आदि का धन प्राण जाने पर भी बिना दण्ड के शान्ति से नहीं देते (१९, १२)।
__आचार्य सोमदेव का यह मो कपन है कि राजा को ऐसे ग्राम किसी को भी नहीं देने चाहिए जिन में धान्य की उपज बढ़त होवो हो। ऐसे ग्राम राजा को चतुरंगिणी सेना का पोषण करते हैं (१४, २२) । यदि राजा अन्न की उपज बाले ग्राम किमी को दान आदि मे दे देगा तो उस की सेना को रसद न मिल सकेगा और रसद के अभाव में राजा एक विशाल स्थायो सना न रख सकेगा 1 सेना के अभाव में वह अपने राष्ट्र को रक्षा करने में सर्वथा असमर्थ होगा। राज्य की आर्थिक समृद्धि की आधारशिला के सम्बन्ध में भी सोमदेव ने प्रकाश डाला है। उन का कयन है कि बहुत सा ग मण्डल, स्वर्ण और शुल्क एवं भूमिकर आदि राज्य की आर्थिक सुबता की आधारमिला है (१९, ३)।
आचार्य सोमदेव का यह भी कथन है कि राजा को ब्राह्मणों एवं विद्वानों का अधिक भूमि दान में नहीं देनी चाहिए । थोड़ो भूमि दान में देने से धाता तथा भूदान प्राप्त करने वाला दोनों हो सुखी रहते हैं (१९, २४) । इस का कारण यह है कि पोड़ी
कि दान में दे दात: मोहार मई झन पासासमा दान लेने वाले को भी यह मय नहीं रहता है कि कोई सरकारी कर्मचारी मेरो भूमि पर अधिकार कर लेगा। इस के अतिरिक्त थोड़ो भूमि में अधिक परिश्रम भी नहीं करना पड़ता।
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