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एक ही राजा के शासन काल में भिन्न-भिन्न अर्थो में प्रयोग हुआ है । किन्तु साधारणतः राष्ट्र से अभिप्राय राज्य का ही था। राष्ट्र के उपरान्त देश का उल्लेख नीतिवाक्यामृत में हुआ है । देश से अभिप्राय आधुनिक प्रदेश से था । विषय माधुनिक जिले के समान था । कहीं विषय को देश का उपविभाग बताया गया है। कहीं विषय का उल्लेख राष्ट्र से विशाल क्षेत्र ते उपविभाग के लिए तुम है । छोटा विभाग था । कहीं मंडल को देश का उपविभाग बताया गया है ।
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मण्डल विषय से
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भारतीय साहित्य में जनपद शब्द का प्रयोग
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प्राचीन भारतीय साहित्य में जनपद शब्द का भी प्रयोग अधिक हुआ है । राजनीतिक दृष्टि से संगठित जन समुदाय के लिए जनपद शब्द का प्रयोग किया जाता या । बौद्ध साहित्य में सोलह महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त 'भारत में अन्य जनपद भी थे । ये जनपद छोटे-छोटे राज्य थे। जिस प्रकार प्राचीन यूनान में नगर राज्यों की स्थापना हुई श्री उसी प्रकार भारत में भी इन जनपदों की स्थापना हुई। पाणिनी की अष्टाध्यायी में भी जनपद शब्द का प्रयोग किया गया है । काशिका में जनपद का लक्षण बताते हुए लिखा है कि जनपद ग्रामों के समूह को कहते हैं । इस के उदाहरण भी वहीं प्रस्तुत किये हैं यथा, जहाँ पांचालों का निवास हो वह पांचाल जनपद है, इसी प्रकार कुम, मत्स्य, अंग, बंग, मंगल, पुण्ड्र आदि जनपद इन नामों के जनों के निवास के कारण ही इन नामों से सम्बोधित किये जाते है ।
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कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी जनपद का प्रयोग प्राप्त होता है । अर्थशास्त्र में जनपद के विषय में विस्तार के साथ लिखा है। जनपद का निर्माण अथवा उस की स्थापना किस प्रकार की जाय इस विषय में कौटिल्य ने बहुत उपयोगी बिचार व्यक्त किये हैं | आचार्य कौटिल्य लिखते हैं कि पूर्व से स्थित एवं नवीन बस्ती बसाते समय राजा परदेश से जन-समुदाय लाकर अथवा अपने ही देश के जिस भूभाग में अधिक जनसंख्या हो, उस के कुछ अंश को यहाँ से हटा कर ले आये। राजा नवीन ग्रामों को इस ढंग से बसाये कि उस में अधिकांश शुद्र जाति के किसान ही बसें । जिस में कम से कम सौ और अधिक से अधिक पाँच सौ परिवार रहें, उन ग्रामों की सीमा एक या दो कोस के अनन्तर रहे।
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क्योंकि ऐसा रहने से आवश्यकता पड़ने पर अन्यान्य ग्राम पर
९. टिटि ८.५७ २० ।
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२. ए० इण्डि० पृ० ३॥ ३. बहो ७, पृ० २६ ।
४. अंगुत्तरनिकाय १.२१३ ४२४२२५६२६०
५. काशिका ४. २.८९ ।
" जनादे "" ग्रामसमुदायो जनपद पंचानानां निवासो जननदः पंचालाः कुरवः मत्स्याः, अंगा,
गाः, मगध, पुण्ड्राः ।
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नीतिवाक्यामृत में राजनीति