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में भी जनपद शब्द का ही प्रयोग राष्ट्र के स्थान पर किया गया है। आचार्य सोमदेव मूरि ने भी जनपःमोती राज्य का अंग मान । नसरी कारण उन्होंने अपने ग्रन्थ मीतिबाक्यामृत में जनपवसमुद्देश की रचना एक पृथक् समुद्देश के रूप में की है । यद्यपि आचार्य सोमदेव ने राष्ट्र को परिभाषा दी है किन्तु उस का वर्णन राज्य के अंग के रूप में नहीं किया है । आचार्य सोमदेव ने जनपदस मुद्देश में देश के विभिन्न उपविभागों के लिए व्यवहार में आने वाले विभिन्न संज्ञा शब्दों की व्याकरण सम्मत व्युत्पत्ति द्वारा व्याख्या की है। उन्होंने राष्ट्र, देश, विषय, मंडल, जनपद, दारक, निर्गम आदि शब्दों की सार्थक ब्याख्या की है। इस व्याख्या में देश की सीमाओं को निर्धारित करने वाला कोई क्रम विवक्षित नहीं रहा है । इस समुद्देश में केवल इन शब्दों की परिभाषा करमा ही आचार्य का प्रधान लक्ष्य दृष्टिगोचर होता है। सर्वप्रथम उन्होंने राष्ट्र की परिभाषा को है। पशु, धान्य, हिरण्य ( स्वर्ण ) सम्पत्तियां वहाँ सुशोभित होती है वह राष्ट्र कहलाता है (१९, १)। स्वामी को दण्ड और कोश की वृद्धि में सहायता देने वाला देश' होता है (१५, १)। विविध वस्तुओं को प्रदान कर स्वामी के घर में (राजधानी में) हाथी और घोड़ों को जो प्राप्त कराता है यह विषय है (१९,३) । समस्त कार्यों के दोहन करने से स्वामी के हृदय को जो भूषित करता है वह मंडल है (१९, ४)। वर्णाश्रम से युक्त स्थान अथवा घन के उत्पत्ति स्थान को जनपद कहते हैं ( १९, ५)। अपने स्वामी की उत्कर्षजनक स्थिति होने से शत्रु के हृदय को भेदन करने वाला दारक है ((१९, ६)। अपनी समृद्धि से स्वामी को जो समस्त व्यसनों से युक्त करे वह निगम है ( १९, ७)।
इस प्रकार आचार्य सोमदेवसूरि ने देश के विभिन्न क्षेत्रों के लिए व्यवहार में आने वाले विभिन्न शब्दों को सार्थक व्याख्या की है । अमरकोश के अनुसार देश, राष्ट्र, विषय और जनपद आदि पर्यायवाची शब्द है अर्थात इन का प्रयोग देश के अर्थ में ही होता है। किन्तु अभिलेखों तथा दानपत्रों में इन शब्दों का प्रयोग देश अथवा राज्य के उपविभागों के रूप में ही प्राप्त होता है। इन विभागों के नामों में भी सर्वत्र साम्य दृष्टिगोचर नहीं होता। एक ही शब्द विभिन्न राजाओं के राज्यकाल में भिन्न अयों में प्रयुक्त हुआ है । राष्ट्र का भारतीय साहित्य में साधारणत: राज्य के अर्थ में प्रयोग हुआ है किन्तु इसी शब्द का प्रयोग राष्ट्रकूटों के शासन काल में कमिश्नरी के अर्थ में प्राप्त होता है। दक्षिण के अन्य राज्यों में इस का अर्थ तहसील या इस से बड़े विभाग जिले के अर्थ में पाया जाता है। अतः इन प्रशासकीय क्षेत्रों के नामों से कोई निश्चित अर्थ नहीं समझना चाहिए, क्योंकि एक ही शब्द का विभिन्न राज्य कालों में अथवा
१. गहा० शान्ति २, राष्ट्रकूटों का इतिहास, पृ. १७६ । ३. एपिइंडि०१५ पृ० २७१, १६ पृ० २७१ इण्डि० रेटिक पृ०१७)
राष्ट्र