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में उन की हस्तिसेना भी एक प्रमुख कारण था। मुसलमान अपनो वएक्सेना के कारण ही विजयी हुए और इस देश के स्वामी बन गये। जयपाल के पुत्र मानन्दपाल ने सिन्धुनदी के तट पर महमूद गजनको को सेना से मोर्चा लिया था। राजपूतों की विजय होने ही वाली थी कि आनन्दपाल के हाथी के सहसा मागने से राजपूत सेना ज्याकुल हो गयी और इस के परिणामस्वरूप महमद विजयी हआ। पुरु की पराजय भी उस के हाथ। के बगल जाने के कारण हो हुई। ।
रथसेना--यह चतुरंगिणी सेना का तृतीय उपयोगी अंग था। रथ समतल भूमि में ही अधिक उपयोगी थे, जिन में धनुर्धारी योद्धा आरूढ़ होकर शत्रु को पराजित करने में समर्थ होते थे। रथसेना में सारथो का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान था, क्योंकि सारपी की कुशलता पर हो युद्ध में बहुत कुछ अंश में विजय आश्रित थो। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ का संचालन भगवान् कृष्ण कर रहे थे । इसी कारण इस युद्ध । में अर्जुन को विजय प्रास हुई। रथ-सैन्य के महत्त्व का वर्णन करते हुए सोमदेव लिखते हैं कि जब धनुविद्या मे प्रवीण धनुर्धारी मोद्धा रथारूक होकर समतल युद्ध-भूमि में शत्रुओं पर प्रहार करते हैं तब विजिगीषु राजाओं को कोई भी वस्तु असाध्य नहीं होतो { २२, ११)1 सारांश यह है कि समतल भूमि एवं प्रवीण योद्धाओं के कारण हो रथारूत योद्धाओं के द्वारा युद्ध में विजिगीषु को विजय प्राप्त होती है । इस के विपरीरा ऊबड़-खाबड़ भूमि अकुशल योद्धाओं के कारण स्थ-संचालन व युद्धादि भली-भांति ने होने से युद्ध में निश्चित ही पराजय होती है ।
आचार्य सोमदेव' का कथन है कि युद्ध में सर्वप्रथम सारभूत सेना को हो मागे रखना चाहिए । इसी से विजय सम्भव होती है। वे लिखते है कि विजिगीषु के रथों द्वारा नष्ट-भ्रष्ट हुई शत्रु सेना आसानो से जीती जाती है, परन्तु उसे मौस ( वंश परम्परा से चली आती हई प्रामाणिक विश्वासपात्र एवं युद्ध-विधा विशारद पैदल सेना ), अधिकारी सेना, सामान्य सेवक श्रेणी सेना, मित्र सेना, आटविक सेना इन छह प्रकार की सनाओं में से सर्वप्रथम सारभूत सेना को युद्ध में सुसज्जित करने का प्रयल करना चाहिए, क्योंकि फल्गुसन्य ( दुर्बल, अविश्वसनीय एवं युद्ध-विद्या में अकुशल सारहीन सेना) द्वारा पराजय निश्चित होती है (२२, १२)।
आचार्य कौटिल्य का कथन है कि वंश परम्परा से चली आने वाली नित्य वश में रहने वाली, प्रामाणिक व विश्वासपात्र पैदल सेना को सारवल कहते हैं और गुण. निष्पन्न हाथियों व घोड़ों की सेना भी सारभूत सैन्य है अर्थात् कुल, जाति, धोखा, काय करने योग्य आयु, शारीरिक बल, आवश्यक ऊँचाई, चौड़ाई आदि, वेग, पराक्रम, युद्धोपयोगी शिक्षा, स्थिरता, सदा पर मुंह उठाकर रहना, सवार की आज्ञा में रहना व अन्य शुभ लक्षण और शुभ घेष्टा इत्यादि गुण युक्त हाथो व घोड़ों का रान्य भी सारवल है । अब विजिगीषु उक्त सारभूत सन्म द्वारा शत्रुओं को सुख पूर्वक परास्त कर सेना अथवा बल
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