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राजा की विजय का कारण बतलाया है।' अर्थशास्त्र में हस्तिपालन, हाथियों के भेद तथा जन के कार्य, हस्तिविभाग के कर्मचारियों एवं उन के कार्यों पर पूर्ण प्रकाश डाला गया है। इस विभाग के अधिकारी को कौटिल्य ने हस्त्यध्यक्ष कहा है।' हस्तियुद्ध का वर्णन करते हुए कौटिल्य लिखते हैं कि हाथियों का कार्य सेना के आगे चलना, पहले से न बने हुए वासस्थान, मार्ग, नदी आदि के घाट बनाना, अपनी सेना के पास खड़े होकर शत्रु सेना को हटाना, नदी की गहराई जानने के लिए उस में प्रवेश करना, वायुसेना का आक्रमण होने पर पंक्तिबद खड़े हो जाना और प्रस्थान करना, ऊँचे स्थान से नीचे उतरना, घने जंगल और शत्रुसेना पर पिल पड़ना, शत्रु के पड़ाव में आग लगाना और अपने पड़ाव में लगी हुई आग को बुझाना, रण जीतना, बिखरी सेना को एकत्रित करना, शत्र की एकमात्र सेना को तितर-बितर करना, संकट में रक्षा करना, शत्रु-सेना को भयभीत करना और कुचल डालना, मद आदि की अवस्था द्वारा शत्रु के हाथियों को विचलित करना, अपनी सेना का महत्त्व प्रकट करना, शत्रु के सैनिकों को पकड़ना और वायु द्वारा बन्दी बनाये गये अपने सैनिकों को मुक्त कराना, शत्रु के परकोटे, सिंहद्वार और अट्टालिकों को गिराना तथा शत्रु के कोष, वाहन आदि को भगा ले जाना, युद्ध में प्रकोण करना, सब चालों के एक साथ प्रयोग को छोड़ सेना के विखरें हुए चारों अंगों का हनन करना, पक्ष, कक्ष तथा उरस्य में खड़ो सेना का मर्दन करना, कहीं से शत्रु पक्ष को निर्बल देख उस पर प्रहार करना और साते हए शत्रु को मार डालना जादि हाथियों के प्रमुख कार्य अथवा हस्तिमुख है।
हाभियों के इतने उपयोगी कायों के कारण ही प्राचीन राजनीतिज्ञों ने हस्तिसेना को प्रधानता दो है । उस की प्रधानता उस के कार्यों के कारण हो है। यह सेना ___ का प्रधान अंग गाया जाता था और अन्य तीन अंग इस के सामने गौण स्थान रखते थे।
हस्तिसेना के पश्चात् द्वितीय स्थान अश्वसेना का था। अश्वों की उपयोगिता भी युद्ध में हाधियों से किसी प्रकार कम नहीं थी। अश्वसेना के सम्बन्ध में सोमदेव ने लिखा है कि अश्वसेना 'चतुरंग सेना का चलता-फिरता भेद है, क्योंकि अश्व अत्यन्त चपलता एवं वेग से गमन करने वाले होते हैं ( २२, ७)। अपवसेना की प्रशंसा करते हुए वे लिखते हैं कि जिस राजा के पास अश्वसेना की प्रधानता है उस पर युद्धरूपी गेंद से क्रीड़ा करने वाली लक्ष्मी विजमश्री प्रसन्न होती है, जिस के फलस्वरूप उसे प्रचुर सम्पति मिलती है । दूरवर्ती शत्रु लोग भी निकटवर्ती हो जाते है । इस के द्वारा विजिगीष बापत्तिकाल में अभिलषित पदार्थ प्राप्त करता है। शत्रुओं के सामने जाना और अवसर पाकर वहां से भाग जाना, छल से उन पर आक्रमण करना व शत्रुसेना को छिन्न
१. की० अर्थ ० १, २ । २.ह . ३१। हस्यमसे हबिनासो म्याम साताना हस्टिहस्तिनीमलभाना...... |
सेना मथवा बक