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घोड़े, रथ और पैदल ये बल के पार अंग बताये गये है। चतुरंगबल में दृस्ति सेना को प्रमुखता दी गयी है (२२, २)। इन विषय में पामार्य सोमदेव लिखते हैं कि राजाओं की विजय के प्रधान कारण हाथी हो होते हैं, क्योंकि युद्ध-भूमि में वे शत्रुकृत सहस्रों प्रहारों से ताजित किये जाने पर भी व्यथित न होकर अकेला ही सहस्रों सैनिकों से युद्ध करता रहता है (२८, ३)।
हाथियों के गुण-किस प्रकार के हाथो युद्धोपयोगी होसे हैं इस विषय में भी नीतिवान्गामृत में र्याप काश डाला गया है ! हाथी जाति, कुल, वन एवं प्रचार के कारण ही प्रमान नहीं माने जाते अपितु वे चार गुणों से प्रमुख माने गये है-(१) उन का शरीर हष्ट-पुष्ट व शक्तिशाली होना चाहिए, क्योंकि यदि वे बलिष्ट नहीं है और उन में अन्य मन्द व मूग आदि जाति, ऐरावत आदि कुल, प्राध्य आदि वन, पर्वत व नदो आदि प्रचार के पाये जाने पर भी ये युद्धभूमि में विजयी नहीं हो सकते, (२) शौर्य-पराक्रम हाथियों का विशिष्ट गुण है क्योंकि इस के अभाव में बालसी हाथी अपने ऊपर मारूक महावत के साथ-साथ युद्ध भूमि में शत्रुओं द्वारा मार डाले जाते है, (३) उन में शुद्धोपयोगी शिक्षा का होना भी अनिवार्य है, क्योंकि प्रशिक्षित हाथी युद्ध में विजयी होते है इसके विपरीत अशिक्षित हायी अपने साथ-साथ महावत को मी नष्ट कर देता है और बिगड़ माने पर उलटकर अपने स्वामी की सेना को भी कुबल डालता है, ( ४ ) हाथियों में युद्धोपयोगी कम्पशोलता आदि ( कठिन स्थानों में गमन करना, शत्रु-सेना का उन्मूलन करना आदि ) का होना भी आवश्यक है, क्योंकि इस के अभाव में वे विजय प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं (२२, ४)।
अशिक्षित हाथी-युद्धोपयोगी शिक्षा शून्य हाथी केवल अपने स्वामी का धन व महावत आदि के प्राण नष्ट कर देते हैं, क्योंकि उन के द्वारा विजय-लाभ रूप प्रयोजन सिद्ध नहीं होते। इस वे निरर्थक घास व अन्न आदि भक्षण द्वारा अपने स्वामी की आर्थिक क्षति कर के अपने ऊपर आरूढ़ महावत को भी नष्ट कर देते हैं एवं बिगड़ जाने पर उलटकर अपने स्वामी को सेना को भी रौंद डालते
हाथियों के कार्य-आचार्य सोमदेवसूरि ने हाथियों के कार्यों पर भी प्रकाश बाला है । वे लिखते है कि हाथियों के निम्नलिखित कार्य है-(१) कठिन मार्ग को सरलतापूर्वक पार कर बाना, ( २ ) शत्रुकृत प्रहारों से अपनी तथा महावत की रक्षा करना, (३)शत्रुनगर का कोट व प्रवेश द्वारा भंग कर उस में प्रविष्ट होकर उसे मष्ट-भ्रष्ट करना, ( ४ ) यात्रु के सैन्य-समूह को कुचल कर नष्ट करना, (५) नदी के जल में एक साथ कतारबद्ध खड़े होकर पुल बांधना तथा ( ६ ) केवल बन्धवालाभ के अतिरिक्त अपने स्वामी के लिए सभी प्रकार के आनन्द उत्पन्न करना आदि (२२, ६)। आचार्य कौटिल्य ने भी हाथियों के कार्यों को महत्त्व प्रदान किया है और हस्तिसेना को १३२
नीतिवाक्यामृत में राजनीति