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को शिष्ट पुरुषों द्वारा विनय, सदाचार आदि की शिक्षा दी गयी है उन का वंश वृद्धिगत होता है तथा राज्य दूषित नहीं होता (२४,७३)। जिस प्रकार घुम से खायी हुई सकड़ी नष्ट हो जाती है उसी प्रकार दुराचारी व उद्दण्ड व्यक्ति को राजपद पर नियुक्त करने से राज्य नष्ट हो आता है (२४,७४)। जो राजकुमार वंशपरम्परा से चले आये निजी विद्वानों द्वारा विनय व सदाचार आदि की नैतिक शिक्षा से सुशिक्षित व सुसंस्कृत किये जाकर द्धिगत किये गये है एवं जिन का लालन-पाला तुबपुर्वक हमा है ये कभी अपने माता-पिता से द्रोह नहीं करते (२४, ७५)। उत्तम माता-पिता का मिलना भी राजकुमारों के पोष्ट भाग्य का द्योतक है (२४,७६)। अर्थात् यदि उन्होंने पूर्वजन्म में पुण्य संचय किया है तो वे माता-पिता द्वारा राज्यश्री प्राप्त करते है और उन को श्रेष्ठ माता-पिता को उपलब्धि होती है। माता-पिता का पुत्रों के प्रति महान् उपकार होता है, इसलिए सुखाभिलाषी पुत्रों को अपने माता-पिता का मन से भी तिरस्कार नहीं करना चाहिए फिर प्रकृति रूप से तिरस्कार करना तो महा अनर्थ है (२४, ७८)। पुन को किसी भी कार्य में पिता की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। सोमदेव का कथन है कि वे राजपुत्र निश्चयपूर्वक सुखी माने गये है जिन के पिता राज्य की बागडोर संभाले हुए है, क्योंकि वे राजपुत्र राज्य के भार को सँभालने से निश्चिन्त रहते है (२४,८४)।
प्राचार्य सोमदेव ने उत्तराधिकार के नियमों को ओर भी कुछ संकेत किया है। वे लिखते हैं कि राजपुत्र, राजा का भाई, पटरानी के अतिरिक्त दूसरी रानी का पुत्र, राजकुमारी का पुत्र, बाहर से भाकर राजा के पास रहने वाला दत्तकपुत्र प्रादि इन सात प्रकार के राज्याधिकारियों में से सबसे पहले राजकुमार को और उस के न रहने पर भाई आदि को यथाक्रम राज्याधिकार प्राप्त होना चाहिए (२४,८८)। शुक्र का भी उत्तराधिकार के सम्बन्ध में यही मत है। सोमदेव का कथन है कि अपनी जाति के योग्य गर्भाधान आदि संस्कारों से हीन पुरुष को राजप्राप्ति एवं दीक्षा धारण करने का अधिकार नहीं है (२४,७१)। आगे वे लिखते है कि राजा की मृत्यु हो जाने पर उस का अंगहीन पुत्र भी उस समय तक राज्याधिकार प्राप्त कर सकता है अबतक कि उस अंगहीन पुत्र की दूसरी कोई योग्य सन्तान न हो जाये (२४, ७२)।
इस प्रकार सोमदेव अंगहीन पुत्र को भी उस समय तक राज्य का अधिकार देने के पक्ष में है जबतक कि उस को कोई योग्य सन्तान राज्यभार संभालने के योग्य न हो जाये । यह बात आचार्य को प्रगतिशीलता एवं व्यावहारिक राजनीतिज्ञता की द्योतक है । अन्य आचार्य शारीरिक दोष वाले राजकुमार को राज्याधिकार प्रदान करने के पक्ष में नहीं है । मनु का कथाम है कि यदि ज्येष्ठ पुत्र किसो शारीरिक अथवा मानसिक दोष
१. शुक्र-नीतिबा०, २४ ।
सुतः सोदरसापानपिशव्या गोत्रिणस्तथा । पौहित्रागन्तुका योग्य पदे राझो यथाक्रमम् ।
राजा