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यदि वह भीक है तो उस के शस्त्रज्ञान का कोई लाभ नहीं। भीरु मन्त्री शस्त्रों के प्रयोग का ज्ञाता होते हुए भी आक्रमण होने पर अपनी रक्षा भी नहीं कर सकता । इस विषय में सोमदेव लिखते है कि जिस का शस्त्र, खड्ग और धनुष अपनी रक्षा करने में भी समर्थ नहीं हैं ऐसे शस्त्र विद्याविशारद व्यक्ति से राज्य का कोई भी लाभ नहीं हो सकता । १०, १३ । जिस प्रकार बछड़े को भारी बोझा होने के कार्य में लगाने से कोई लाभ नहीं, उसी प्रकार कायर पुरुष को गुरु के लिए नोहारकामले लिए प्रेरित करने से कोई लाभ नहीं हो सकता ( १०, २१)। कायर और मूर्ख पुरुष मन्त्रीपद के अयोग्य है । जिस वीर पुरुष का शास्त्र शत्रुओं के बाक्रमण को निर्मूल नहीं बनाता उस का शस्त्र धारण करना उस को पराजय का हेतु है। इसी प्रकार जिस प्रकार विज्ञान का शास्त्र ज्ञानवादियों के बढ़ते हुए वेग को नहीं रोकता उस का शास्त्रज्ञान भी उस की पराजय का कारण होता है ( १०, २०)।
१. निष्कपटता--निष्कपटता भी मन्त्री के लिए आवश्यक है। मन्त्रो को राजा से किसी भी स्थिति में कपटपूर्ण व्यवहार नहीं करना चाहिए । कपटो मन्त्री राजा का विमाश करता है।
उपर्युक्त गुण केवल प्रधान मन्त्री के लिए ही नहीं, अपितु अन्य मन्त्रियों के लिए भी इन गुणों की परम आवश्यकता थो! जिस मन्त्रो में जैसी योग्यता होती थी उसे वैसे हो कार्य में लगाया जाता था ( १८, ६०)। लालचो व्यक्ति को मन्त्री पद पर नियुक्त करने का भी सभी आचार्यों ने निषेध किया है। सोमदेव लिखते है कि जिस के मन्त्री की बुद्धि धन प्रण करने में आसक्त होती है उस राजा का न तो कोई कार्य ही सिद्ध होता है और न उस के पास धन ही रहता है। इस बात की पुटि के लिए सोमदेव ने एक सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है जो इस प्रकार है- यदि पाली ही भोजन को स्वयं भक्षण कर जाये तो भोजन करने वाले को भोजन कहाँ मिल सकता है। इस का अभिप्राय यही है कि यदि मन्त्री राजव्य को स्वयं ही हड़पने लगे तो फिर राजकोष किस प्रकार सम्पन्न हो सकता है । मन्त्रिपरिषद के सवस्यों की संख्या
मन्त्रिपरिषद् का सर्वप्रथम कर्तव्य राजा को शासन कार्यों में परामर्श देना एवं उन को सम्पन्न करना था। राजकीय महत्त्व के विषयों पर उचित परामर्श के लिए एक या दो व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक व्यक्तियों का परामर्श उपयोगी माना गया है । आचार्य सोमदेव का कथन है कि जिस राजा के बहुत से सहायक होते है उसे समस्त अभिलषित पदार्थों की प्राप्ति होती है। अक्रेला व्यक्ति ( मन्त्री ) अपने को किन-किन कार्यों में लगायेगा ( १०,८०-८१ )। इस का अभिप्राय यही है कि राज्य के विभिन्न कार्य होते है, उन्हें अकेला मन्त्री नहीं कर सकता। अत: विभिन्न कार्यों के लिए अधिक मन्त्रियों की आवश्यकता है। इस के लिए प्राचार्य सोमदेव बहुत सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत
नीतिवाक्यामृत में राजनीति