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वस्तुओं के संग्रह तथा क्रय-विक्रय केन्द्र रहेगा बार वह स्थान जलपथ तथा स्थलपथ से सम्बद्ध होगा। इस स्थानीय नगर के चारों ओर राजा पार हाप के अन्तर पर तीन नाइयां खुदबाये । वे तीनों ही क्रमशः चौदह दण्ड ( ९६ हाथ ), बारह दण्ड ( ४८ हाथ ) तथा दस दण्ड ( ४० हाथ ) चौड़ी होनी चाहिए। उन की गहराई चौड़ाई से एक चतुर्थांश कम अथवा आधी रहे। अपवा चौड़ाई का एक तृतीयांश उस को गहराई रखे, उन बाइयों का तलप्रदेश मौकोर और पत्थर बना होना चाहिए। उस की दीवार पत्थर या इंटों की बनी हुई हो और खुदाई इतनी गहरी की जाये कि धरती के भीतर से पानी निकल आये । अथवा नदी आदि के आगन्तुक जल से उन्हें भरा जा सके । उन में से जल निकलने का भी मार्ग बना होना चाहिए । उन में कमल तथा नक आदि जलजन्तु भी. रहें।
कौटिल्य ने दुर्ग विधान के प्रकरण में उपर्युक्त वर्णन के अतिरिक्त भी बड़े विस्तार के साथ जनपद की रचना के विषय में प्रकाश डाला है। दुर्गका महत्त्व
प्राचीन आचार्यों ने दुर्ग के महत्त्व पर भी पूर्ण रूप से अपने विचार व्यक्त किये है । इस विषय में सोमदेव लिखते है कि जिस देश में दुर्ग नहीं है वह पराजय का स्थान है। जिस प्रकार समुद्र के मध्य नौका से पुपक होने वाले पक्षी का कोई रक्षक नहीं होता, उसी प्रकार संकट काल में दुर्ग विहीन राजा की भी रक्षा करने वाला कोई नहीं ( २०, ४-५) । कौटिल्य ने दुर्ग के महत्व का वर्णन करते हुए लिखा है कि यदि दुर्ग न हो तो कोष पर शत्रु सुगमता से अधिकार कर लेगा और युद्ध के अवसर पर शत्रु की पराजय के लिए दुर्ग का ही पाश्रय लेना हितकर होगा। सैन्यशक्ति का प्रयोग बहीं से भली-भांति हो सकता है। जिन राजाओं का दुग सुद्ध होता है उन्हें परास्त करना सुगम नहीं होता है। दुर्ग के महत्त्व के सम्बन्ध में मनु का कपन है कि दुर्ग में सूरक्षित एक धनुर्धारी सो योद्धाओं से तथा सो घर्षारी दस सहल योद्धाओं से युद्ध करने, में समर्थ हो सकते है अत: राजा को अपनी सुरक्षा के लिए दुर्ग का निर्माण करना चाहिए । याज्ञवल्क्य का कथन है कि दुर्ग राजा, जनता तथा कोष की सुरक्षा के . लिए परम आवश्यक है।
दुर्ग के भेद-आचार्य सोमदेव ने स्वाभाविक एवं आहार्य दो प्रकार के दुर्गों का उल्लेख किया है ( २०, २)। टोकाकार ने स्वाभाविक दुर्ग के पार भेव बतलाप हैं.-१. बोदक, २. पर्वत दुर्ग, ३, धन्वहदुर्ग तथा ४. वनदुर्ग । १. कौ० बर्थ०१.३। २. नहीं.२.३-४। ३. अही,,१। १. मनु०७,७४। १. याज्ञ०१,३२१ ।
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नीतिवाक्यामृत में राजनीति