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सूचना राबा को देता था । प्रतिवन्धक का कार्य आदायक द्वारा राजकोष में जमा किये गये राजस्व एवं अन्य करों के विवरण पत्रों पर राममुद्रा अंकित करना था। नोचोग्राहक राजकोष का उच्चाधिकारी होता था। यह वर्तमान कोषाधिकारी के समान धा। यह राजकीय माय-व्यय का लेखा रखता था। उपर्युक्त चारों अधिकारी राजाध्यक्ष के अघोन थे और इसी की अध्यक्षता में कार्य करते थे।
आय-व्यय-लेखा
शासन को भूचारु रूप से चलाने के लिए पाक्षिक प्राशा का लेखा तैयार करना परम आवश्यक है। यदि राजा को इस बात का ही ज्ञान नहीं कि उस की वार्षिक आय क्या है तथा वर्ष में कितना व्यय होगा तो वह अपने राज्य को अधिक समय तक नहीं चला सकेगा। इस का कारण यह है कि आय से अधिक व्यय होने से राष्ट्र में आर्थिक संकट उत्पन्न हो जायेगा और इस के परिणामस्वरूप राज्य मष्ट हो जायेगा । आचार्य सोमदेव ने वार्षिक आय-व्यय का लेखा तैयार कराने का भी निर्देश दिया है। उन का कथन है कि राजा नोवीग्राहक ( कोषाध्यक्ष ) से
राजकीय आय-व्यय की लेखा-बही को लेकर स्वयं उस का निरीक्षण करे तथा उस को विशुद्ध करे ( १८, ५३)। आचार्य का विचार है कि अर्थदूषण से धन-कुबेर भी भिक्षा का पात्र बन जाता है ( १६, १८)। उन्होंने श्राय से अधिक व्यय को अर्थ का दूपण बतलाया हूँ ( १६, ११)। उन का यह भी विचार है कि जन्म आय-व्यय का लेना रखने वाले अधिकारियों में कोई विवाद उपस्थित हो, राज्य की आय कम हो गयी हो तथा संकटकाल में अधिक व्यय की आवश्यकता हो तो ऐसे अवसर पर राजा का यह कर्तव्य है कि वह सदाचारी एवं कुशल राजनीतिज्ञ शिष्ट पुरुर्षों का एक आयोग नियुक्त कर के उस गम्भीर विषय पर विचार-विमर्श करे ( १८,५४)। यदि यह आयोग उस व्यय के पक्ष में हो और उस से अधिक लाभ की सम्भावना है तो उसी के अनुसार कार्य करना चाहिए। इस प्रकार आचार्य सोमदेव आर्थिक विषयों में उच्चापिकारियों से परामर्श करना तथा उस के अनुकूल कार्य करने का निर्देश देते हैं। सन की दृष्टि में समान आय-व्यय वाला कार्य आनन्ददायक है ( १७, ११९)। उन का कथन है कि नित्य घम के व्यय से सुमेरु भी क्षीण हो जाता है ( ८,५)। मत: आम के अनुरूप ही व्यय करना चाहिए।
व्यापारी वर्ग पर राजकीय नियन्त्रण
राज्य का अन्तिम लक्ष्य अनला का कल्याण एवं उस की सर्वतोमुखी उन्नति करना है । व्यापारी वर्ग जन-कल्याण के मार्ग में बाधक बन सकता है। अतः उस पर कठोर नियन्त्रण रखने का आचार्य सोमदेव ने राजा को आदेश दिया है। व्यापार एवं वाणिज्य पर राजकीय नियन्त्रण न होने से व्यापारी वर्ग मनमानी करने लगता है।
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नीतिवाक्यामृत में राजनीति