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३. प्रतिपत्रदान--अधिकारियों के लिए छत्र, चेंबर आधि पढ़मूल्य बस्तुएँ भेंटस्वरूप प्रदान करना चाहिए जिससे कि वे अपने स्वामी से प्रसन्न होकर उत्कोच द्वारा संचित किये हुए धन को राजा को सौंप दें।
इस प्रकार आचार्य सोमदेव ने उपर्युक्त तीन जपाय राज्याधिकारियों से उस्कोच आदि का धन अहण करने के सम्बन्ध में बताये है ( १८, ५५ )।
अधिकारी लोग दुष्टन्त्रण के समान बिना कठोर दण्ड दिये घर में उत्कोच द्वारा संचित किया हुआ धन आसानी से देने को प्रस्तुत नहीं होते ( १८, ५६ ) । उन्हें बारबार उच्च पदों से साधारण पदों पर नियुक्त करके भयभीत करना चाहिए। अपनी अवनति से घबड़ाकर चे उत्कोच का धन स्वामी को देने के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं ( १८,५७)। जिस प्रकार वस्तु को बारम्बार प्रस्तर पर पटकने से साफ किया जाता है उसी प्रकार अधिकारियों को उन के अपराधी सिद्ध होने पर बारम्बार दण्डित करने से उत्कोच का धन राजा को सौंप देते है ( १८,५८) । अधिकारीवर्ग में आपसी फूट होने से भी राजाओं को कोष की वृद्धि होती है ( १८, ६४ )। इस का तात्पर्य यह है कि अधिकारीवर्ग आपसी फूट के कारण एक-दूसरे का अपराध राजा के सम्मुख प्रकट कर देते है, जिस के कारण सस्कोच आदि से संचित किया हुआ धन अधिकारीवर्ग से राजा को सरलतापूर्वक प्राप्त हो जाता है । इस प्रकार इन समस्त साधनों से राजकोष की वृद्धि को जातो थी । आचार्य सोमदेव ने अधिकारियों को सम्पत्ति को राजाओं का द्वितीय कोष बतलाया है जो कि यथार्थ ही है ( १८, ६५)। भापत्तिकाल में राजा अधिकारियों से प्रार्थनापूर्वक धन प्राप्त कर सकता है ऐसा आचार्य का मत है (२१,१४)। इसी कारण अधिकारियों को सम्पत्ति को राजाओं का वितोय कोष बतलाया गया है। राजस्व विभाग के अधिकारी
नीतिवाक्यामृत में राजस्व विभाग के पांच अधिकारियों का उल्लेख मिलता है ( १८, ५१ ) । इन अधिकारियों के नाम आदायक, निबन्धक, प्रतिबन्धक, नीवी ग्राहक तथा राजाध्यक्ष है।
आदायक का कार्य शुल्क ग्रहण करना तथा व्यापारियों एवं कृषकों से अन्य प्रकार के कर ग्रहण करना था। इस अधिकारी का यह कर्तव्य था कि राजस्व तथा अन्य कर वसुल कर के राजकोष में जमा कर दें। इस प्रकार इस के दो कार्य थे, एक तो कर ग्रहण करना तथा दूसरा, उस संग्रहीत धनराशि को राजकोष में जमा करना । निबन्धक आदायक वा सहायक कर्मचारी था जो कि राजस्व का समस्त विवरण लिखता धा। एक प्रकार से यह आदायक का सम्परीक्षक था। यह संग्रहीत राजस्वकोष का हिसाब देखता था और यह भी देखता था कि जितनी धनराशि राजस्व में प्राप्त हुई है वह राजकोष में जमा हुई है अथवा नहीं । इस प्रकार का निरीक्षण कर के यह उस की
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