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इस समस्त विवरण का तात्पर्य यह है कि राजा को कृषकों के साथ अन्याय - पूर्ण व्यवहार कदापि नहीं करना चाहिए और उन की फ़सल को किसी प्रकार को हानि नहीं पहुँचानी चाहिए । कृषकों के साथ उदारता का पवहार करने तथा उन को हर प्रकार की सुविधाएं प्रदान करने से देश में कृषि कर्म एवं वाणिज्य की वृद्धि होती है, ओ कि राज्य की आर्थिक समृद्धि का मूल है। आचार्य सोमदेव का यही विचार है कि वार्ता की समृद्धि में हो राजा को समस्त समृद्धियां निहित है (८, २ ) ।
अन्य प्रकार के कर
भूमि कर के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं पर लगने वाले कर भी राज्य की आय के साधन थे । शुल्क से राज्य को पर्यास धन प्राप्त होता था। विक्रेता और क्रेता से राजा को जो भाग प्राप्त होता है वह शुल्क कहलाता है। शुल्क प्राप्ति के स्थान हट्टमार्ग ( चुंगी-स्थान ) बादि है । इन स्थानों का सुरक्षित होना परम आवश्यक है। इस के साथ ही यह भी आवश्यक है कि वहाँ पर न्यायांचित कर ही प्रण किया जाये। यदि वहाँ पर किसी भी प्रकार का अन्याय होगा होला लगाय कर देंगे और इस से राजकीय आय को क्षति पहुँचेगी । आचार्य सोमदेव लिखते हैं कि आय के स्थानों में व्यापारियों से थोड़ा-सा भी अन्याय का धन ग्रहण करने से राजा को महान् आर्थिक हानि होती है, क्योंकि व्यापारियों के क्रय-विक्रय के माल पर अधिक कर लगाने से वे लोग भारी कर के भय से व्यापार बन्द कर देते हैं या छल-कपट का व्यवहार करते हैं जिस के फलस्वरूप राज्य को आर्थिक हानि होती है (१४, १४) । आयात और निर्यात कर
नीतिवाक्यामृत में आयात और निर्यात कर का भी उल्लेख मिलता है । दख सम्बन्ध में भी आचार्य ने कुछ निर्देश दिये हैं। उन का कथन है कि जिस राज्य में अन्य देश की वस्तुओं पर अधिक कर लगाया जाता है तथा जहाँ के राजकर्मचारी बलपूर्वक अल्प मूल्य देकर व्यापारियों से बहुमूल्य वस्तुएं छीन लेते हैं उस राज्य में अच्य देशों से माल आना बन्द हो जाता है (८, ११-१२ ) । इस से राज्य की आय का प्रमुख स्रोत समान हो जाता है। अतः बाहर के माल पर अधिक कर नहीं लगाना चाहिए । अल्प कर लगाने से विदेशी व्यापारियों को देश में माल लाने की प्रेरणा मिलती हैं जोर ये बहुत सा सामान लाते हैं। अधिक मामात होने से उस पर लगने वाले शुल्क से राज्य की आय में पर्याप्त वृद्धि होती है ।
शुल्क
स्थानों की सुरक्षा
किसी देश में बाहर के व्यापारी तभी आ सकते हैं जब कि उन की सुरक्षा की उचित व्यवस्था हो । यदि शुल्क स्थानों पर अथवा मार्ग में उन को चोर आदि लूट लें या वहाँ के अधिकारी अल्प मूल्य देकर उन को बहुमूल्य वस्तुएँ हस्तगत कर लें अथवा
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कोष