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औदकदुर्ग, पार्वत, सातनदुर्ग दवा मग शादि गौ के चार प्रकार हैं। महाभारत में छह प्रकार के दुर्गों का उल्लेख मिलता है--{१) पनवदुर्ग, (२) महीदुर्ग, ( ३) गिरिदुर्ग, ( ४ ) मनुष्यदुर्ग, (५) मृत्तिकादुर्ग, ( ६ ) वनदुर्ग । पुराणों में भी दुर्गों का वर्णन मिलता है। ऋषि वाल्मीकि ने भी लंका वर्णन में लंकानगरी को अनेक प्रकार के दुर्गों से सुरक्षित बतलाया है। दुर्ग के गुण
माचार्य सोमदेवसूरि ने दुर्ग की विशेषताओं का भी उल्लेख किया है । धुर्ग को जिन विभूतियों के कारण विजिगीषु शत्रुकृत उपद्रवों से अपने राष्ट्र को सुरक्षित कर विजय प्राप्त कर सकता है उन का वर्णन आचार्य ने इस प्रकार किया है-दुर्ग की भूमि पर्वत आदि के कारण विषम, ऊंची-नीची तथा विस्तीर्ण होनी चाहिए। जहां पर अपने स्वामी के लिए ही घास, ईषन और जल बहुतायत से प्रास हो सके, परन्तु आक्रमण करने वाले शत्रुओं को समाप्त हो, जहां गेहूँ, चावल आदि अन्न तथा नमक, तेल, घी आदि रसों का संग्रह प्रचुरमात्रा में हो, जिस के प्रथम द्वार से प्रचुर धान्य और रसों का प्रवेश एवं दूसरे से निष्कासन होता हो तथा जहाँ पर वीर सैनिकों का पहरा हो ये दुर्ग को सम्पत्ति है। जहां पर उपर्युक्त सामग्री का अभाव हो वह दुर्ग कारागार के समान अपने स्वामी के लिए घातक होता है ( २०, ३)।
दुर्ग की सम्पत्ति के विषय में मनु, कामन्दक तथा शुक्र ने भी प्रकाश डाला है। मनु का कथन है कि धुगं शस्त्र, धन-धान्य से युक्त, वाहनों, विद्वानों, कलों को जानने वालों, कलो, जल और धन से युक्त होना चाहिए । शत्रुदुर्ग पर अधिकार करने के उपाय
राजा किस प्रकार अपने शत्रु के दुर्ग पर अधिकार प्राप्त कर सकता है, इस विषय में भी सोमदेव ने प्रकाश डाला है। उन के अनुसार शत्रुदुर्ग पर अधिकार करने के निम्नलिखित उपाय है
१. अभिगमन-सामादि उपाय द्वारा शत्रुदुर्ग पर शस्त्रादि से सुसज्जित सैन्य प्रविष्ट करना ।
१.कौ० अर्थ, २, ३। २. महास, शान्ति.०८४, ५।
धन्त्र महीदुर्ग गिरिनु तथैव च ।
मनुष्यानुग मृदुर्ग अनर्ग'च हानि पट् । ३. वायु०८, १०८; मत्स्या २१७, ६-७; अग्निा , २२२, ४-५ । ४. रामायण. युद्धमाट-३, २० ।
लता पुनिराजम्मा देवसूर्गा भयावहा ।
दादेयं गात चान्य कृत्रिम न चतुर्दिधम् । ६. मनु०, ५,७५कामन्दक, ५, ६५ दाङ्गा०, १, २९२-२१६ । ६. मनु, ७,७६ ।
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नीतिवाक्यामृत में राजनीति