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आचार्य सोमदेव ने कोष के गुणों की जो व्याख्या की है वह आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है । आपत्ति-काल में धान्य और पशुओं के विक्रय से पर्याप्त धन प्राप्त नहीं हो सकता । अतः जिन वस्तुओं का विक्रय तुरन्त हो सके और अल्प वस्तु अधिक मूल्य में बिक सके ऐसी ही वस्तुओं का अधिक मात्रा में राजकोष में संग्रह होना आवश्यक है | इसी उद्देश्य से सोमदेव ऐसी वस्तुओं का संग्रह करने के लिए राजा को परामर्श देते है | नाणक की भी कोष में बड़ी आवश्यकता रहती है, क्योंकि सेना कोर अन्य राजकर्मचारियों को वेतन में नाणक ( प्रचलित मुद्रा ) ही देना पड़ता है। इस मुद्रा से व्यक्ति अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का सरलता पूर्वक क्रय कर सकता है । स्वर्ण एवं रजत की अधिक मात्रा होने से नाणक तैयार किये जा सकते हैं। इसलिए उत्तम कोष बही है जिस में सोना एवं रजत अधिक मात्रा में हो। इस के अतिरिक्त यदि कोई शत्रु राजा के देश पर आक्रमण कर दे और उस के पास युद्ध करने के लिए पर्याप्त सेना न हो अथवा पराजय की आशंका हो तो राजा साम-दामाद से शत्रु को लौटा सकता है । शत्रु को तभी धन से सन्तुष्ट किया जा सकता है जब कि राजा का कोश स्वर्ण एवं रजत से परिपूर्ण हो ।
कोषविहीन राजा
आचार्य सोमदेवसूरि ने धनहीन राजा को निन्दा की है, क्योंकि उन की दृष्टि में राज्य की प्रतिष्ठा एवं सुरक्षा की आधारशिला कोश ही है। आचार्य का कथन है कि धनहीन व्यक्ति को तो उस की स्त्री भी त्याग देती है फिर अन्य पुरुषों का तो कहना ही
( २१, ९ ) । इस का अभिप्राय यह है कि घनहीन राजा को उस के सेवक तथा जिस से वह असहाय कथन है कि धनहीन
पदाधिकारी त्याग कर अन्य राजा की सेवा में चले जाते हैं। अवस्था को प्राप्त होकर नष्ट हो जाता है। आचार्य का यह भो व्यक्ति ( राजा ) चाहे कितना ही कुलीन एवं सदाचारी क्यों न हो, सेवकगण उस की सेवा करने को प्रस्तुत नहीं होते, क्योंकि वहाँ से उन्हें जीविका के लिए धन प्राप्ति की कोई आशा नहीं होती ( २१, १०) उसके विपरीत नीच कुल में उत्पन्न हुए एवं चरित्रभ्रष्ट व्यक्ति से धनाढ्य होने के कारण उसे श्रन का स्रोत समझ कर सभी लोग उस की सेवा के लिए प्रस्तुत रहते हैं । उक्त विवेचन का अभिप्राय यही है कि कुलीन और सदाचारी होने पर राजा को राजतन्त्र के नियमित तथा व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए न्यायोचित उपायों द्वारा कोष की वृद्धि करनी चाहिए । "आचार्य सोमदेव ने आगे लिखा है कि उस तालाब के विस्तीर्ण होने से क्या लाभ है जिस में पर्याप्त जल नहीं है ( २१, ११) । परन्तु जल से परिपूर्ण छोटा तालाब भी इस से कहीं अधिक प्रशंसनाय है । सारांश यह है कि मनुष्य कुलीनता आदि से बड़ा होने पर यदि दरिद्र है तो उस का बड़प्पन व्यर्थ है, क्योंकि उस से कोई મૈં भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता । अतः नैतिक उपायों द्वारा धन का संग्रह करना महत्त्वपूर्ण बतलाया हूँ ।
कोष
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