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व्यक्ति मन्त्रणा करने वाले के मुख के विकार और हस्तादि के संचालन से तथा प्रतिध्वनिरूप शब्द से मन में रहने वाले गुप्त अभिप्राय को जान लेते हैं। अतः राजा को दूत के समक्ष मन्त्रणा आदि कार्य नहीं करने चाहिए (१०, २७)। मन्त्र के लिए उपयुक्त स्थान
यह भी एक महत्त्वपूर्ण बात है कि मन्त्र या मन्त्रणा किस स्थान पर की जाये। मन्त्रणा में स्थान का भी बहुत महत्व है। आचार्य सोमदेव ने इस विषय में भी राजा को सचेत किया है कि वह किन किन स्थानों पर मन्त्रणा न करे । इस' सम्बन्ध में आचार्य के विचार इस प्रकार है-जो स्मात मागे राहामा डसा हो ऐसे स्थान पर तथा पर्वत या गुफा आदि स्थानों में जहां पर प्रतिध्वनि निकलती है वहाँ पर राजा और मन्त्री को मन्त्रणा नहीं करनी चाहिए (१०,२६)। अत: गुप्त मन्त्रणा का स्थान चारों ओर से दबा हुआ और प्रतिध्वनि से रहित होना चाहिए। गुरु विद्वान ने भी लिखा है कि मन्त्र सिद्धि चाहने वाले राजा को खुले हुए स्थान में मन्त्रणा नहीं करनी चाहिए, अपितु जिस स्थान में मन्त्रणा का शब्द टकराकर प्रतिध्वनित नहीं होता है ऐसे स्थान में बैठ कर मन्त्रणा करनी चाहिए।' आचार्य सोमदेव का मत है कि मन्त्र स्थान में पशु-पक्षियों को भी नहीं रहने देना चाहिए । पशुपक्षी मी राजा की गुप्त मन्त्र मा को प्रकाशित कर देते है जैसे शुक-सारिकाओं की कहानियों से ज्ञात होता है (१०, ३३)।
__ अपरीक्षित स्थान पर भी कभी मन्त्रणा नहीं करनी चाहिए (१०, २९) । इसके सम्बन्ध में आचार्य सोमदेव ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत करते है--वृद्ध पुरुषों के मुख से सुना जाता है कि एक समय पिशाब लोग हिरण्य गुप्त सम्बन्धी वृत्तान्त की गुस मन्त्रणा कर रहे थे। उसे रात्रि में बट वृक्ष के नीचे छिपे हुए वररुषि नामक राजमन्धी ने सुन लिया था । अतः लस ने हिरण्यगुप्त के द्वारा कषित श्लोक के प्रत्येक पाद सम्बम्पी एक-एक असर से अर्थात् चारों पदों के चारों अक्षरों से पूर्ण लोक की रचना कर लो थो (१०, ३०) । अतः अपरीक्षित स्थान पर कभी मन्त्रणा न करे । बृहस्पति का विचार यह है कि मैदान में और जहाँ शब्द को प्रतिध्वनि होती हो, वहाँ सिद्धि का पाइने वाला राजा मन्त्रणा न करे। महाभारत में बताया गया है कि जहाँ मन्त्रणा हो तो वहाँ बोने, कुबड़े, अन्धे, लंगड़े, हिजड़े, तिर्यग्योनि वाले जीव न रहने पावें। यदि इन के समक्ष मन्त्रणा की जायेगी तो वह अवश्य ही प्रकट हो जायेगी। गुप्त मन्त्रणा प्रकाशित हो जाने के कारण
मन्त्र को गुप्त रखना बहुत आवश्यक पा, क्योंकि मन्त्रणा के प्रकाशित हो जाने से महान् अपकार होता था। इसी हेतु मन्त्रणा को गुप्त रखने के लिए बड़ी सावषामो
१. गुरु-नातिया। २. हस्पति-नीतिवा०, पृष्ठ ११७ । ३. महाभारत-८३, ५५ ।
मन्त्रिपरिषद्