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अधिकारी बनाने योग्य व्यक्ति
आचार्य सोमदेव लिखते हैं कि यही व्यक्ति, अधिकारी बनाने योग्य है जो अपराम करने पर राजा द्वारा सरलता पूर्वक दण्डत किये जा सकें ( १८, २१)। ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं सम्बन्धी को कभी अर्थ-सचिव मादि पदों पर नियुक्त नहीं करना चाहिए ( १८, २२)। आचार्य सोमदेव ने इन को अधिकारी न बनाने के कारणों पर भी प्रकाश डाला है। वे लिखते है कि ब्राह्मण अधिकारी होने पर अपने जातिगत स्वभाव के कारण ग्रहण किया हुआ धन बड़ी कठिनता से देता है अथवा नहीं भी देता (१८, २३ ) । क्षत्रिय के विरोध में अपना मत प्रकट करते हुए आचार्य लिखते हैं कि क्षत्रिय अधिकारी विरुद्ध हुआ तलबार दिखाता है ( १८, २४ )। इस का अभिप्राय यह है कि क्षत्रिय अधिकारी द्वारा ग्रहण किया हुआ धम शस्त्र प्रहार के बिना नहीं प्राप्त हो सकता। कुटुम्बी और सहपाठी को अधिकारी बनाने का निषेध
अपने कुटम्बी अथवा सहपाठो को भी राजा कभी किसी जसवपद पर नियुक्त न करे (१८, २५)। जब राजा द्वारा अपना कुटुम्बी या सहपाठी बन्धु आदि अधिकारी बना दिया जाता है तो बह-में राजा का बन्धु है अथवा सहपाठी हूँ-इस गर्व से दूसरे अधिकारियों को तुच्छ समझ कर स्वयं समस्त राजकीय धन हड़प लेता है । वह सब अधिकारियों को तिरस्कृत कर के स्वयं अत्यन्त शक्तिशाली हो जाता है। राजा किसी ऐसे व्यक्ति को भी उच्च अधिकारी न बनावे जिसे अपराध के कारण दण्ड देने पर पश्चात्ताप करना पड़े। किसी पूज्य व्यक्ति को भी अधिकारी नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि वह स्वयं को राजा द्वारा पूज्य समझ कर निर्भीक व उम्खल होला हुमा राजा की आज्ञा का उल्लंघन करता है तथा राजकीय पन का अपहरण आदि मनमानी प्रवृत्ति करता है (१८, ३२)। उस के इस व्यवहार से राजकीय धन की क्षति होती है। राजा किसी पुराने सेवक को भी अधिकारी न बनाये ( १८, ३३)। क्योंकि वह उस से परिचय के कारण चोरी आदि अपराध कर लेने पर भी निडर रहता है । राजा किसी उपकारी को भी अपना अधिकारी न बनाये ( १८, ३४)। क्योंकि उपकारी पुरुष पूर्वकृत उपकार राणा के समक्ष प्रकट कर के समस्त राजकीय पन हड़प कर जाता है। किसी बाल्यकाल के मित्र को भी अधिकारी नहीं बनाना चाहिए । विस के निषेध का कारण यह है कि वह अतिपरिचय के कारण अभिमानबश स्वयं को राजा के समान ही समझता है ( १८, ३५ ) । क्रूर व्यक्ति को भी राजा कभी अधिकारी न बनाये क्योंकि कर हृदय वाला व्यक्ति अधिकारी बनकर समस्त अनर्थ उत्पन्न करता है ( १८, ३६ ) । राजद्वेषी फर हृदय वाले पुरुष को अधिकारी बनाने से जो हानि होती है उस का उदाहरण शकुनि तथा शकटार से मिल सकता है, जिन्होंने मन्त्री प्राप्त कर के अपने स्वामियों से द्वेष कर के राज्य में अनेक अनर्थ उत्पन्न किये जिस के फल
मन्त्रिपरिषद्