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भी राजा के पश्चात द्वितीय स्थान अमात्य अथवा मन्त्री का ही था। राजा को अपनी प्रकृति ( मन्त्री एवं सेनापति आदि ) से कैसा व्यवहार करना चाहिए तथा उनके अपराधी सिव होने पर क्या दण्ड देवे इस विषय में भी सोमदेव ने प्रकाश डाला है। वे लिखते हैं कि नीतिज्ञ रागा का कर्तव्य है कि वह अपराध के कारण पृथक् किये गये अधिकारियों को नीति द्वारा वश में करे । नोभी और लोभी राज्याधिकारियों को सेवा से मुक्त करे, क्योंकि उन्हें पुनः नियुक्त करने से उस की तथा राज्य की क्षति होने की सम्भावना रहती है । जीविका के बिना भयभीत हुए कर्मचारियों को पुनः उन के पदों पर नियुक्त कर देना चाहिए। ऐसा करने से वे कृतज्ञता के कारण विद्रोह नहीं कर सकते । स्वाभिमानी व्यक्तियों का सम्मान करना चाहिए (१०, १६३)।
__रामा का यह कर्तव्य है कि जिन कार्यों से उस की प्रकृति, मन्त्री, सेनापति आदि कर्तव्यच्युत होते है, उन्हें न करें एवं लोभ के कारणो से पराङ्मुख होकर उदारता से काम ले (१०, १६५)। वशिष्ठ ने कहा है कि राजा को अमात्य आदि प्रकृति के नष्ट और विरक्त होने के साधनों का संग्रह तपा लोभ फरमा उचित नहीं है, क्योंकि प्रकृति के दु-नष्ट और विरक्त होने से राज्य की वृद्धि नहीं हो सकती। शत्रु माथि से होने वाले समस्त क्रोधों की अपेक्षा मन्त्री व सेनापति आदि प्रकृति वर्ग का कोष रामा के लिए विशेष कष्टदायक होता है ( १०, १६७ )। इस का तात्पर्य यही है कि राज्यरूपी वृक्ष का मूल अमात्य आदि प्रकृति ही होती है। इस के विरुद्ध होने से राज्य नष्ट हो जाता है । अतः राजा को उसे सन्तुष्ट रखने में प्रयतशील रहना पाहिए । राजा का यह भी कर्तव्य है कि जिन को कौटुम्धिक सम्बन्ध आदि के कारण कठोर दण्ड नहीं दिया जा सकता, ऐसे राजद्रोही अपराधियों को तालाब सषा खाई खुदवाना, पुल बनवाना आदि कार्यों में नियुक्त कर क्लेशित करे (१०, १६८)। अमात्यों के दोष
___आचार्य सोमदेव ने जिस प्रकार मन्त्री आदि के गुण-दोषों का विवेचन नीतिवाक्यामृत में किया है उसी प्रकार अमात्यादि के कर्तव्यों, गुणों तथा उन फे घोषों पर भी पूर्ण प्रकाश डाला है। उन्होंने स्पष्ट रूप से यह बतलाया है कि किन व्यक्तियों को राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त करना चाहिए । अमात्यों के दोषों का वर्णन करते हुए सोमदेव लिखते है कि राजा निम्नलिखित व्यक्तियों को अमात्यपद पर कभी नियुक्त न करे-- अत्यन्त क्रोधी, सुदढ़ पक्ष वाला, बाह्य एवं आभ्यन्तर मलिनता से दूषित, श्यसनी, अकुलीन, हठी, आय से अधिक व्यय करने वाला, विदेशी तथा कृपण । सोमदेव ने अमात्यपद के अयोग्य व्यक्तियों को स्पष्ट रूप से व्याख्या भी की है जिस का वर्णन निम्नलिखित है
१. वशिष्ठ-नीतियार पृ० १५५ ।
क्षयो सोभा निरागी च पीना न शरयते । यतस्तासांप्रदेण राज्यतिः प्रजायते।
मन्त्रिपरिषद्