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पाहिए-इस प्रकार के प्रश्न पूछ कर मन्त्रिगण जैसी मन्त्रणा दें उसी के अनुसार राजा कार्य करे। ऐसा करने से उस को मन्त्र का ज्ञान भी हो आयेगा तथा मन्त्र भी प्रकाशित न हो सकेगा। परन्तु पिशुन इस बात से सहमत नहीं है। उन फा कपन है कि जब मन्त्रियों से किसी अनिश्चित विषय पर परामर्श लिया जाता है तो वे उपेक्षापूर्ण हो उस का उत्तर देते हैं और उस से अन्य व्यक्तियों के सामने प्रकाशित भी कर देते है । अत: जो मन्त्री जिस विषय से सम्बन्ध रखता हो उस विषय पर केवल उसी से परामर्श लिया जाये । ऐसा करने से दोनों कार्यों की सिद्धि हो जायेगी। अर्थात् मन्त्र का भी ज्ञाम हो जायेगा तथा बह गुम भी रह सकेगा।।
इन समस्त आवायों के विचार उद्धत करने के उपरान्त आचार्य कौटिल्य सबसे असहमति प्रकट करते हुए लिखते हैं कि राजा तीन या चार मन्त्रियों से मन्त्रणा करे । उन का कथन है कि यदि एक ही मन्त्री से मन्त्रणा की जायेगी, तो बह् मन्त्री निरंकुश हुया स्वच्छन्दता ! चारण लोमा : हाले प्रतिक्षित गम्भीर विषयों पर अकेले मन्त्री के लिए विचार करना बहुत कठिन कार्य है। आचार्य कौटिल्य को मन्त्रियों से भी मन्त्रणा के विरोध में है, क्योंकि दोनों मन्त्रियों के मिल जाने से राजा उन के सम्मुख असहाय हो जायेगा और उन के एक-दूसरे के विरोधी होने से मन्त्र प्रकट हो जायेगा। परन्तु तीन या चार मन्त्रियों से परामर्श करने से उपर्युक्त दोषों का परिहार हो जायेगा तथा राजकार्य भी सुचारु रूप से चल सकेगा।' आचार्य सोमवेय भी कौटिल्य के विचारों से बहुत कुछ सहमत है किन्तु वे विषम संख्या वाले मन्त्रिमण्डल के पक्ष में हैं 1 गुप्त मन्त्रणा के प्रकाशित हो जाने से राजा के सम्मुख जो संकट वसस्थित हो जाता है वह कठिनाई से भी दूर नहीं किया जा सकता। इसलिए राजा को अपने मन्त्र की रक्षा में सदैव सावधान रहना चाहिए, क्योंकि मन्त्र-भेद का कष्ट वुनिवार होता है। आचार्य सोमदेय लिखते हैं कि मनुष्य को प्राणों से भी अधिक अपने गुप्त रहस्य की रक्षा करनी चाहिए ( १०, १४७)।
भन्म के गृह्य रखने के इतने महान महत्व के कारण ही प्राचीन बापायों ने मन्त्र के प्रकाशित हो जाने के कारणों तथा उस को गुप्त रखने के उपायों का विरोध विवेचन किया है । वास्तव में यह बहुत हो महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि मन्त्रसिद्धि पर राज्य की समृद्धि एवं सुरक्षा सम्भव है और उस के प्रकट हो जाने पर राजा महान् विपत्तियों में फंस जाता है। मन्त्रणा के समय मन्त्रियों के कर्तव्य
मन्त्रियों को मन्त्रणा के समय परस्पर कलह कर के वाद-विवाघ और स्वच्छन्द वार्तालाप नहीं करना चाहिए। सारांश यह है कि कलह करने से वैर-विरोष और अनुभवशून्म वार्तालार से अनादर होता है। अतः मन्त्रियों को मन्त्रवेला में उक्त बाते १. कौ० अर्ध०, १, १६ । मन्त्रिपरिषद्
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