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क्योंकि मर्यादा का अतिक्रमण करने से फलवती भूमि भी अरण्यतुल्य हो जाती है ( १९, १९)। इस के विपरीत न्यायपूर्वक प्रजा का पास्ता गरे प्रषा को अभिलाषित' फलों की प्राप्ति होती है, मेव समय पर वर्षा करते है तथा सम्पूर्ण व्याधियां शान्त हो जाती है ( १७, ४५-४६ ) 1 आचार्य का यह भी कथन है कि राजा समय के परिवर्तन का कारण होता है ( १७, ५०)। सारे लोकपाल राजा का ही अनुकरण करते हैं इसी कारण राजा मध्यम लोकपाल होते हुए भी उत्तम लोकपाल कहलाता है ( १७,४७)। सोमदेन का कथन है कि यदि समुद्र ही अपनी मर्यादा का उल्लंघन करने लगे और सूर्य अपना प्रकाशधर्म त्याग कर अन्धकार का प्रसार करने लगे तथा माता भी अपने बच्चे का पालनरूप धर्म छोड़कर उस का भक्षण करने लगे, तो उन्हें कोन रोक सकता है ( १७, ४४ )। इसी प्रकार राजा भी यदि अपना धर्म ( शिष्ट-पालन तथा दुष्ट-निग्रह ) छोड़कर प्रजा के साथ अन्याय करने लगे तो उसे दण्ड देने वाला कोन हो सकता है, अर्थात् कोई नहीं ! अतः राजा को प्रजा के साथ काभी अन्याय नहीं करना चाहिए । यदि राजा हो दुष्टों की सहायता करने लगे तो फिर प्रजा का कल्याण किस प्रकार हो सकता है । १७, ४६ )।
इस प्रकार आचार्य सोमदेव ने राजस्व के उच्च आदर्श अपने अन्य में व्यक्त किये हैं। वे राजा को धर्म का आचरण करने, मर्यादा का पालन करने तथा प्रजा को हर प्रकार से रक्षा करने और उस का पालन-पोषण अपने कुटुम्ब के समान करने का आदेश देते है।
नीतिधाक्यामृत में राजनीति